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चार द्वारोंकी रक्षा

आपका कृपापत्र मिला। समाचार जाने। महाभारतमें आया है कि हाथ, वाणी, उदर और उपस्थ—इन चार द्वारोंसे मनुष्य पाप करता है। इन चार द्वारोंकी भलीभाँति रक्षा करे तो मनुष्य पापसे बच जाता है।

जो मनुष्य जूआ नहीं खेलता, दूसरेका धन किसी तरह भी नहीं लेता, नीच जातिके मनुष्योंका यज्ञ नहीं कराता, पर-स्त्रीका स्पर्श नहीं करता और क्रोधमें आकर किसीको चोट नहीं पहुँचाता, उसका हस्तद्वार सुरक्षित रहता है। जो निरन्तर सत्यवादी, मितभाषी (थोड़ा बोलनेवाला) और सावधान रहकर भगवान‍्का नाम लेता है और क्रोध, झूठ, कुटिलता तथा दूसरोंकी निन्दाका त्याग कर देता है, उसका वाग्द्वार सुरक्षित रहता है। (कठोर वाणी बोलना, अहंकारके वाक्य उच्चारण करना, दूसरोंका बुरा हो—ऐसी बात कहना और व्यर्थ बातें करना भी वाग्द्वारकी रक्षा न करना है।)

जो मनुष्य अधिक भोजन और लोभ न करके शरीरकी रक्षाके लिये परिमित (शुद्ध) भोजन करता है और निरन्तर सत्पुरुषोंकी संगति करता है, वही उदरद्वारकी रक्षा कर सकता है।

जो पुरुष एक स्त्रीके रहते दूसरा विवाह नहीं करता तथा ऋतु-समयके अतिरिक्त स्त्री-सम्भोग तथा कभी परस्त्रीगमन नहीं करता, उसीका उपस्थद्वार सुरक्षित रहता है। जो मनुष्य इन चारोंकी रक्षा नहीं कर सकता, उसके सब प्रयत्न विफल होते हैं।

आपकी बहुत-सी बातोंका उत्तर इसीमें आ गया है। जीवन अमूल्य है; जो श्वास चला गया, वह फिर लौटकर नहीं आता। ऐसी हालतमें व्यर्थके कामोंमें, और खास करके जिनसे दु:ख, अशान्ति एवं कलह-क्लेश बढ़ते हों तथा भगवान‍्का भजन छूटता हो, ऐसे कार्योंमें जीवनका लगाना तो कभी बुद्धिमानी नहीं कहा जा सकता। आप समझदार हैं। सोच-विचारकर वही कीजिये जो यहाँ सुख, शान्ति और पुण्य बढ़ानेवाला और आगे भगवान‍्की प्राप्ति करानेवाला हो।

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