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चार काम अवश्य कीजिये

सादर सप्रेम हरिस्मरण। भाई साहब! जीवनके अमूल्य श्वास बीते जा रहे हैं। मौत कब आ जाय, कुछ भी पता नहीं। अतएव भगवान‍्के नाम, रूप, गुण, लीला आदिके श्रवण, कीर्तन और मननमें जीवनके क्षणोंको सावधानीके साथ लगाइये! ऐसा न हो कि भगवत्कृपासे मिला हुआ मानव-देहका यह सुअवसर चला जाय और पीछे हाथ मल-मलकर पछताना पड़े। आपको अब संसारमें करना ही क्या है। बहुत कर लिया, बहुत देख लिया। अब तो उस महान् और अत्यावश्यक कार्यको साधिये, जो इस जीवनमें अवश्य-अवश्य साधना है।

कुछ भी न हो तो चार काम तो कीजिये ही—

(१) जान-बूझकर पाप मत कीजिये।

(२) जहाँतक बने भगवान‍्के नाम-जपका अभ्यास बढ़ाइये।

(३) सत्संग और सच्छास्त्रोंके अध्ययनमें कुछ समय दीजिये।

(४) जहाँतक बने, गरीबोंकी तन और खास करके धनसे खूब सेवा कीजिये।

इन सबमें भाव रखिये केवल भगवत्प्रीतिका। ये बातें आप चाहें तो सहज ही कर सकते हैं और मेरा विश्वास है कि लगनके साथ इन चारों साधनोंमें लगे हुए मनुष्यका जीवन सफल होगा ही। अधिक क्या लिखूँ। शरीर क्षणभंगुर है, यह याद रखिये।

दो बातनको याद रख, जो चाहै कल्यान।
नारायन इक मौतको दूजे श्रीभगवान॥

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