Hindu text bookगीता गंगा
होम > शान्ति कैसे मिले? > दूसरेके नुकसानसे अपना भला नहीं होगा

दूसरेके नुकसानसे अपना भला नहीं होगा

घर-परिवारका पालन, कुल-जातिकी सेवा और स्वदेशप्रेम सभी आवश्यक है, यथायोग्य सबको इनका आचरण अवश्य करना चाहिये, परंतु ऐसा नहीं होना चाहिये कि अपने घर-परिवारके पालनमें दूसरोंके घर-परिवारकी उपेक्षा, अपने कुल-जातिकी सेवामें दूसरे कुल-जातियोंकी हानि और स्वदेशके प्रेममें अन्य देशोंके प्रति घृणा हो। सच्चा पालन, सच्ची सेवा और सच्चा प्रेम तभी समझना चाहिये जब अपने हितके साथ दूसरेका हित मिला हुआ हो। जिस कार्यसे दूसरोंकी उपेक्षा, हानि या विनाश होता है, उससे हमारा हित कभी हो ही नहीं सकता। भगवान् सम्पूर्ण विश्वके समस्त जीवोंके मूल हैं, भगवान् ही सबके आधार हैं, भगवान‍्की सत्तासे ही सबकी सत्ता है, समस्त जीवोंके द्वारा और समस्त जीवोंके जीवनरूपमें भगवान‍्की ही भगवत्ता काम कर रही है। इस बातको याद रखते हुए सबकी सेवाका, सबके हितका और सबकी प्रतिष्ठाका खयाल रखकर अपने कुटुम्ब, जाति और देशसे प्रेम करना तथा उनकी सेवा करनी चाहिये। तभी प्रेम उज्ज्वल होता है एवं सेवा सार्थक होती है। नहीं तो, जहाँ हम दूसरेके विनाशमें अपना विकास देखते हैं, वहाँ परिणाममें हमारा भी विनाश ही होता है। यह याद रखना चाहिये कि जिसमें दूसरेका अकल्याण है, उससे हमारा कल्याण कभी नहीं हो सकता!

अगला लेख  > किसीको दु:ख पहुँचाकर सुखी होना मत चाहो!