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गीतगोविन्दके अधिकारी

सादर हरिस्मरण। पत्र मिला। आपका लिखना ठीक है। सचमुच गीतगोविन्द बहुत ही उत्तम रसमय काव्य है और इसमें भगवान् श्रीकृष्णकी विलास-लीलाओंका वर्णन है; परंतु जिनका भगवान् श्रीकृष्णमें पूर्णतया भगवद्भाव न हो और जिनका मन विषयोंसे सर्वथा न हट गया हो, उन्हें गीतगोविन्द कभी नहीं पढ़ना चाहिये। खास करके जो लोग विषय-बुद्धिसे गीतगोविन्दको पढ़ते हैं, उनको तो हर तरहसे हानि ही होती है। गीतगोविन्दके प्रारम्भमें एक पद्य है—

यदि हरिस्मरणे सरसं मनो
यदि विलासकलासु कुतूहलम्।
मधुरकोमलकान्तपदावलीं
शृणु तदा जयदेवसरस्वतीम्॥

‘यदि लीलामय स्वयं भगवान् श्रीहरिके स्मरणमें मन सरसभावसे अनुरक्त हो, यदि उनकी दिव्य विलास-कला जाननेका कौतूहल हो तभी जयदेवकी मधुर कोमलकान्त पदावलीको सुनो।’

इसमें स्वयं भगवान् श्यामसुन्दरने अपनी लीलारसमयी स्वरूपाशक्ति गोपांगनाओंके साथ, अपनी ही आह्लादिनी शक्ति राधामुख्या व्रजदेवियोंके साथ कालिन्दीकूलके कुसुमित कुंजकाननमें जो दिव्य भगवत्स्वरूपभूता केलिविलासरूपा लीलाएँ की हैं, उनका सरस वर्णन है। प्राकृत नायक-नायिकाका विलासवर्णन कदापि नहीं है। इस प्रकारकी जिनकी दृढ़मति हो और जो श्रीराधा-माधवके लीला-स्मरणमें लौकिक कामसंकल्पशून्य दिव्य रसास्वादका अनुभव करते हों, केवल वे ही इसके पढ़नेके अधिकारी हैं। अतएव मेरी समझसे आप-हम-जैसे लोगोंके लिये यह उपयोगी ग्रन्थ नहीं है। हमारे लिये तो सर्वोत्तम ग्रन्थ है—श्रीमद्भगवद‍्गीता। उसमें आपका अनुराग भी है अतएव आप मन लगाकर उसीका स्वाध्याय कीजिये।

‘गीतगोविन्द’ पर कौन-कौन-सी टीकाएँ उपलब्ध हैं, इसका मुझको ठीक पता नहीं है। आपने जिन टीकाओंके नाम लिखे, उन सबको मैंने नहीं देखा है। पता नहीं वे सब छपी हैं या नहीं। एक वैष्णव विद्वान‍्ने निम्नलिखित टीकाएँ बतलायी हैं—

१-नारायणकृत ‘प्रद्योतनिका’, २-पुजारीगोस्वामीकृत ‘बालबोधिनी’, ३-जगद्धरकृत ‘भावार्थदीपिका’, ४-शंकरमिश्रकृत ‘रसमंजरी’, ५-रंगनाथकृत ‘गीतगोविन्दमाधुरी’, ६-कृष्णदत्तकृत ‘गंगा’, ७-राणा कुम्भाकृत ‘रसिकप्रिया,’ ८-नारायण कविराजकृत ‘सर्वांगसुन्दरी,’ ९-रसमयदासकृत, १०-मिश्रकान्तकृत, ११-मानांककृत, १२-परमानन्दकृत और १३-कुमारखानकृत। इनके अतिरिक्त जर्मन विद्वान् श्रीऔफ्रेक्टके द्वारा संकलित सूचीमें २२ टीकाओंके नाम और दिये हैं। कुछ आधुनिक विद्वानोंकी भी टीकाएँ सुनी गयी हैं।

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