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जगत‍्की असारता

आपका पत्र मिला। आपके अध्ययन, रुचि तथा विचारोंका परिचय मिला। इधर कुछ वर्षोंसे आपके मनमें जो तरह-तरहकी शंकाएँ उठती और आपको चिन्तित कर देती हैं, वे वास्तवमें भ्रम या वहम हैं। आप इसे मनसे निकाल दें। एक दिन सम्पूर्ण जगत् का, सूर्य और चन्द्रमा तथा सम्पूर्ण ब्रह्माण्डका भी लय हो जायगा। यह विचार जो आपके मनमें उठा, इससे तो आपको और प्रसन्न होना चाहिये; क्योंकि यह समस्त शास्त्रों और पुराणोंका सिद्धान्त है, संतों-महात्माओंका अनुभव है तथा प्रतिक्षण जगत‍्का जो संहार हो रहा है, उसके आधारपर अनुमान किये जानेयोग्य अकाटॺ सत्य है। ऐसा सत्य जो अनायास आपके मनमें प्रकट हुआ, इससे आपको सन्तोष होना चाहिये। यद्यपि यह बात सब जानते हैं, सब लोग अनुभव करते हैं, किंतु किसीका इस ओर ध्यान नहीं जाता, इसलिये लोग प्रमादमें पड़े-पड़े ही जीवन खो देते हैं। कल्याणका एक सुन्दर अवसर हाथसे निकल जाता है।

जिस बड़भागीके ध्यानमें जीवनकी असारता और जगत‍्की क्षणभंगुरताका बोध हो जाय, उसको सावधान होकर अपने कल्याणके साधनमें लग जाना चाहिये। पापसे बचें, भगवान‍्का नाम लें, उनका ही ध्यान करें, दान और सेवासे दूसरे लोगोंको सुख पहुँचानेकी चेष्टा करें, जिससे मृत्युके समय पछताना न पड़े। मृत्युसे डर क्यों हो? जो बात अवश्य होनेवाली है, उसको रोक कौन सकता है। यह मिट्टीकी काया सदा चल नहीं सकती। एक-न-एक दिन गिरेगी ही। जब मृत्यु निश्चित है, तब आज हो या कल, इसकी चिन्ता क्यों की जाय? हार्टफेल होनेसे होगी या और किसी बीमारीसे, इसके लिये परेशान होनेकी क्या आवश्यकता? जब मृत्यु होनेवाली होगी, हो जायगी। जबतक नहीं हुई है, तबतक इस शरीरसे, इस मनसे, इस बुद्धि और विद्यासे पूरा लाभ उठा लिया जाय। यही अपनी सावधानी है, यही अपना कर्तव्य है।

इसके अतिरिक्त मृत्यु कोई चीज नहीं है। वस्त्र नहीं बदला, शरीर बदला। आत्मा तो अजर-अमर है। जैसे कपड़ा पुराना होता और फटता है, उसी प्रकार शरीर भी बूढ़ा होता और नष्ट होता है। इससे आत्माकी या आपकी मौत कभी नहीं होती। इस प्रकार विचार करनेसे आपका भय दूर हो सकता है। इसके लिये आप प्रतिदिन गीताके द्वितीय अध्यायका अर्थसहित पाठ करें। रामनामका जप भी लाभकर है। आप भय और वहमको तो एकदम मनसे निकाल ही दीजिये। शरीरमें अधिक आसक्ति और भोगोंके प्रति अधिक लोभ होनेसे ही मनुष्य मृत्युसे डरता है। किंतु है यह मूर्खता। आप-जैसे पढ़े-लिखे लोग इस मूर्खतामें पड़ें—यह शोभा नहीं देता। यह अज्ञान ही मनुष्यको कष्ट देता और नरकमें गिराता है। आप इससे बचें और भगवान‍्का स्मरण-भजन करके जीवनको सफल बनावें। शेष प्रभुकी कृपा!

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