जप परम साधन है
सप्रेम हरिस्मरण। पत्र मिला, उत्तरमें कार्यवश विलम्ब हो ही जाता है। इसके लिये खेद नहीं मानना चाहिये। नित्यनियम पूर्ववत् चल रहा है, सो ठीक है, चलना ही चाहिये। आजकल आने-जानेमें बड़ी असुविधा है, अत: आना नहीं चाहिये।
गायत्री और नामका जप करते काफी समय हो गया, सो बड़ा अच्छा है। इससे बढ़कर और है ही क्या? साधनसे कभी भी ऊबना नहीं चाहिये। ठीक रास्ता जाननेकी इच्छा लिखी सो आप इस गायत्री तथा नाम-जपको क्या बेठीक रास्ता मानते हैं? यही ठीक रास्ता है, इसीपर विश्वासपूर्वक चलते रहें। इस समय चाहे आपको इससे लाभ न दीखे, पर लाभ अवश्य हुआ है और होगा। जप चलता है, यही एक बड़ा लाभ है। जपके लाभको तो कोई रोक नहीं सकता। मनुष्यके जीवनमें उसके द्वारा भगवान्का स्मरण और जप होता रहे, यही तो करना है। भगवान्ने तो जप-यज्ञको अपना स्वरूप बतलाया है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि।’ एकान्त मिले या न मिले, उपांशु हो या न हो—इसकी चिन्ता छोड़कर जिस तरहसे भी हो, जपका क्रम चालू रहने दें। अपने साध्य और साधनमें कभी संदेह नहीं करना चाहिये। चित्तमें नाना प्रकारके खयाल दौड़ाकर बहम न पैदा होने दें।
हिंदू-समाजकी वर्तमान अवस्थापर खेद होना स्वाभाविक है। भगवान्से प्रार्थना करें और अपनेसे जो हो सके, करें। तभी हालत सुधर सकती है। शेष प्रभु-कृपा।