निन्दासे डर नहीं, निन्दनीय आचरणसे डर है
सप्रेम हरिस्मरण। आपका पत्र मिला। आपने जो कुछ लिखा है, उससे पता लगता है—आप सर्वथा निर्दोष हैं और वे लोग अकारण ही आपपर कलंक लगाकर आपका जी दुखा रहे हैं। संसारमें ऐसा प्राय: हुआ करता है। झूठा कलंक तो लोगोंने श्रीकृष्णपर भी लगा दिया था। जिनको परचर्चा और परनिन्दामें मजा आता है, वे लोग स्वभावत: ही ऐसा किया करते हैं। कुछ लोग बहुत बुरी नीयतसे जान-बूझकर ऐसा करते हैं। पर जिसकी निन्दा की जाती है, वह यदि निर्दोष है, भगवान्के सामने सच्चा है तो परिणाममें उसका कदापि अहित नहीं हो सकता। आपको यह समझना चाहिये कि भगवान् आपको कलंकतापसे तपाकर और भी उज्ज्वल बनाना चाहते हैं। आपके जीवनको सर्वथा निर्मल बनानेके लिये ही ऐसा हो रहा है। आपको इससे डरना नहीं चाहिये, न उद्विग्न ही होना चाहिये। श्रीभगवान् सर्वान्तर्यामी, सर्वतश्चक्षु और सदा सर्वत्र वर्तमान हैं, उनसे हमारे मनके भीतरकी भी कोई बात छिपी नहीं है, यदि हम उन भगवान्के सामने सच्चे हैं तो फिर हमें किस बातका भय है। साथ ही यह भी याद रखना चाहिये कि कर्मका फल देनेवाले भी भगवान् ही हैं; हमारे कर्मके अनुरूप ही हमें फल मिलेगा। दूसरोंके बकनेसे कुछ भी नहीं हो सकता।
असलमें इस प्रकारकी झूठी निन्दामें जो भगवान्की कृपाका अनुभव करते हुए निर्विकार और प्रसन्न रहते हैं, वे ही विश्वासी साधु या भक्त हैं। जो लोग आपकी झूठी निन्दा करते हैं, वे बेचारे तो दयाके पात्र हैं; क्योंकि आपपर मिथ्या कलंक लगाकर अपने ही हाथों अपनी ही हानि कर रहे हैं। इस कुकर्मका फल उन्हें भोगना पड़ेगा। पर आपको तो उनका उपकार मानना चाहिये। आपके लिये तो वे आपका चरित्र निर्मल बनानेमें सहायता कर रहे हैं। उनके प्रति जरा भी द्वेष नहीं करना चाहिये।
निंदक नियरे राखिये आँगन कुटी छवाय।
बिनु पानी बिनु साबुना निर्मल करै सुभाय॥
संतोंकी यह वाणी याद रखनेयोग्य है। आपका ऐसा भाव होगा तो भगवान् आपपर विशेष प्रसन्न होकर आपकी सहायता करेंगे। हाँ, आप अपने चरित्रको सदा सावधानीसे देखते रहिये। उसमें कहीं जरा-सा भी दोष दिखायी दे तो उसे दूर करनेकी चेष्टा कीजिये। किसीके द्वारा की जानेवाली मिथ्या निन्दासे आपका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा, परंतु यदि आपके अंदर सचमुच दोष होगा, निन्दाके योग्य आचरण या भाव होगा तो जगत्के द्वारा प्रशंसा प्राप्त करके भी आप उसके बुरे परिणामसे—अनिष्टसे बच नहीं पायेंगे। अपने मनकी कालिमा ही सच्चा कलंक है, दूसरोंके द्वारा अकारण लगाया जानेवाला कलंक नहीं।