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प्रतिकूलतामें अनुकूलता

सप्रेम हरिस्मरण! श्रीभगवान‍्की दया तो हम सभीपर है। उसका अनुभव करना चाहिये प्रतिकूलतामें। जो मनुष्य प्रतिकूलतामें भगवद्दयाके दर्शन कर उसे अनुकूलतामें परिणत कर सकता है, वह बड़ा सुखी रहता है। परिणत करना नहीं पड़ता। बस, प्रतिकूलतामें भगवद्दयाका अनुभव होते ही अपने-आप ही वह प्रतिकूलता अनुकूलताके रूपमें पलटकर आनन्ददायिनी बन जाती है। संतलोग ऐसा ही किया करते हैं। हमें उनके आदर्शसे लाभ उठाना चाहिये।

श्रीभगवान‍्का नाम-जप करते रहिये और कम-से-कम यह दृढ़ चेष्टा रखिये, जिसमें वाणी और शरीरसे कोई पाप न हों। मानसिक पापोंसे बचनेकी यथासाध्य कोशिश कीजिये। नामका आश्रय होगा तो पाप आप ही नष्ट हो जायँगे।

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