सच्चे साधकके लिये निराशाका कोई कारण नहीं
प्रिय महोदय! सादर हरिस्मरण। आपका पत्र मिला। ‘आप सच्चे हृदयसे यथासाध्य साधन करते हैं, नियमित स्वाध्याय करते हैं, जहाँतक बनता है भगवान्को याद रखनेकी और निषिद्ध कर्मोंसे तन-मन-वचनसे बचनेकी चेष्टा करते हैं, तो भी अभीतक आपकी, आप जैसी चाहते हैं, वैसी स्थिति नहीं हुई है, इससे कभी-कभी निराशा-सी हो जाती है’—सो इसमें कोई आश्चर्यकी बात नहीं है। साधकके जीवनमें ऐसे बहुत-से अवसर आते हैं, जब उसे निराशाका सामना करना पड़ता है; पर वास्तवमें आपको जरा भी निराश नहीं होना चाहिये। अर्जुनने जिस क्षण भगवान्की शरणागति स्वीकार की थी— ‘शिष्यस्तेऽहं शाधि मां त्वां प्रपन्नम्’ कहा था और गीताके अन्तमें ‘करिष्ये वचनं तव’ कहकर भगवान्का आदेश पालन करनेकी प्रतिज्ञा की थी, उसी क्षण उनकी विजय हो चुकी थी। तथापि उन्हें बड़े-बड़े महारथियोंसे अठारह दिनोंतक भयंकर युद्ध करना पड़ा। बीच-बीचमें कई बार पराजयका-सा प्रसंग आया, निराशाकी घड़ियाँ आयीं; पर वे सब विजयके साधनमात्र थे। इसी प्रकार साधकके जीवनमें जो अपने प्राचीन स्वभावसे लड़ते-लड़ते कभी-कभी थकान मालूम होती है—निराशा-सी होती है, वह तो उसकी सफलताके चिह्न हैं। उनसे जरा भी डरना या घबराना नहीं चाहिये। प्रत्युत ऐसी स्थितिमें भगवान्के बलपर अपनी सफलताका और भी दृढ़ निश्चय करना चाहिये तथा साधनको और भी प्रबल बनाना चाहिये। अमावस्याकी चार पहरकी रात्रि बीत जानेपर भी समीप घड़ी न होनेकी अवस्थामें अन्धकार ज्यों-का-त्यों प्रतीत होता है। इससे भूलसे ऐसा मानकर निराशा हो सकती है कि ‘अमावस्याकी रात्रि तो वैसी-की-वैसी ही बनी है; पता नहीं, इसका अन्धकार कभी मिटेगा या नहीं।’ परंतु वस्तुस्थिति तो यह है कि अब प्रकाशमें बहुत ही थोड़ा-सा समय अवशेष रह गया है। सूर्योदय होते ही अमावस्याका घोर अन्धकार जादूके घरकी तरह अकस्मात् विलीन हो जायगा। उसका पता भी नहीं लगेगा। प्रभातके प्रकाशसे सभी दिशाएँ प्रफुल्लित हो उठेंगी। इसी प्रकार जब आपके साधनका परिणाम सहसा प्रकट होगा, तब आपका भी रोम-रोम खिल उठेगा। आपको अपूर्व आनन्द होगा। जो साधक भगवत्कृपाका आश्रय लेकर सचाईके साथ साधनमें संलग्न है और अपनी शक्तिभर साधन करनेमें प्रमाद नहीं करता, आप सत्य मानिये, उसकी अमावस्याकी रात्रि लगातार कट रही है, चाहे वह उसे दिखायी न दे।
अतएव आप जरा भी निराश न होइये। जो एक बार भी भगवान्के शरण हो गया है, उसके लिये कोषसे निराशाका शब्द ही निकल गया है। यह निश्चय मानिये। विशेष भगवत्कृपा।