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साधनका फल

सादर हरिस्मरण! पत्र मिला था, उत्तर नहीं लिखा जा सका, क्षमा करें। आप चाहती हैं कि ‘मेरा मन भगवान‍्के श्रीचरणोंके सिवा और कहीं न लगे, पर ऐसा नहीं होता है। आप मनको जितना ही जीतना चाहती हैं, उतना ही वह दूर भागता है।.....’ सो आपकी यह चाह बहुत ही सराहनीय है। यह चाह ही बढ़ते-बढ़ते जिस दिन अनन्य ‘आवश्यकता’ बन जायगी—अर्थात् भगवान‍्के श्रीचरणोंके अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं सुहायेगा, एक क्षणकी भी भगवान‍्की विस्मृति आपके हृदयमें व्याकुलता उत्पन्न कर देगी, उसी क्षण आप भगवान‍्के श्रीचरणोंको सदाके लिये प्राप्त करके निहाल हो जायँगी। नाम-जप, प्रार्थना—जो कुछ करती हैं, करती रहें। ऐसा सन्देह न करें कि प्रभु नहीं सुनते हैं या इसका कोई फल नहीं हो रहा है। आपका भगवान‍्के लिये दिया हुआ एक भी क्षण व्यर्थ नहीं जा रहा है। अभी वह फल प्रकट नहीं हो रहा है। जिस दिन अकस्मात् वह प्रकट होगा, उस दिन आपको बड़ा आश्चर्य होगा और महान् आनन्द भी। अन्धकार प्रात:कालसे कुछ पूर्वतक रहता है, परंतु सूर्योदय होते ही अन्धकारका एक साथ नाश हो जाता है। एक घड़ी पहलेतक जो अन्धकार दिखायी देता था, ऐसा मालूम होता था मानो यह अन्धकार मिट ही नहीं रहा है, जाने कब मिटेगा, वही इतना मिट जाता है कि सूर्यके सामने कहीं खोजनेपर भी उसका पता नहीं लगता। यह सूर्योदयकी मंगल-बेला ज्यों-ज्यों रात बीत रही थी, त्यों-ही-त्यों समीप आ रही थी; परंतु थोड़ी-सी रात रहते उसका पता नहीं लग रहा था। इसी प्रकार भगवान‍्के श्रीचरणोंको प्राप्त करनेकी इच्छाके साथ जो भगवद्भजन, प्रार्थना, स्तवन, ध्यान आदि किये जाते हैं, उनका प्रत्यक्ष फल न दिखायी देनेपर भी वे भगवान‍्के समीप ले जा रहे हैं। पता नहीं, आपकी कितनी रात कट चुकी है और अकस्मात् वह मंगलमय प्रभात कब होनेवाला है, जब आप भगवच्चरणारविन्दको प्राप्त कर लें। पर विश्वास रखिये, भगवान् सब सुन-देख रहे हैं। आपका काम भी हो रहा है। आप प्रेम तथा विश्वासपूर्वक उत्तरोत्तर भजन बढ़ाती रहें। तनिक भी निराशाको मनमें स्थान न दें।

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