शाश्वत शान्तिके केन्द्र भगवान् हैं
प्रिय बहिन! सादर हरिस्मरण। आपका पत्र मिला। आप एक भावनामय जगत्में विचरण कर रही हैं। इस आयुमें ऐसा होना अस्वाभाविक भी नहीं है। अभी आपके सामने जीवनका एक विशाल क्षेत्र पड़ा है। जहाँ मनोहर उद्यान भी है और कण्टकाकीर्ण वन भी। कोमल समतल भूमिपर भी चलना है और दुर्गम गिरिगह्वरको भी पार करना है। आप दोनों परिस्थितियोंमें समान रूपसे प्रसन्न रह सकें—इसके लिये अभीसे तैयारी कर लेनी है। शाश्वत विराम और सनातन आश्रयकी खोज आपकी आध्यात्मिक उन्नतिके लिये शुभ चिह्न हैं। आप अभी कुमारी हैं। इसके बाद आपके सामने एक नयी दुनिया होगी, जिसके प्रति प्रत्येक युवक-युवतीका आकर्षण होता है। जीवनके कितने ही सपने और अधूरी आशाएँ लेकर नारी उस नूतन संसारमें प्रवेश करती है और अपने प्रेम, त्याग, बलिदान और तपस्यासे वहाँ स्वर्गको उतार देती है। आप उस जीवनसे कुछ भयभीत-सी जान पड़ती हैं, उसके प्रति आपके मनमें कुछ अच्छे भाव नहीं हैं; कदाचित् अशान्तिका यह भी कारण हो। शाश्वत शान्तिके केन्द्र हैं—भगवान्, जो सदा सबके हृदयमन्दिरमें विराजमान हैं। शान्ति उनके चरण चूमती है, उसी शाश्वती शान्तिके स्पर्शसे मनमें शान्ति आती है। जगत्में कोई स्थान, कोई परिस्थिति या कोई साधन शान्तिका निकेतन नहीं है। आपको इस जीवनमें किसने भेजा है? भगवान् ने। आपके अन्तरमें इतनी भावनाओंकी सृष्टि कौन कर रहे हैं? भगवान्। मनुष्य भगवान्के हाथोंका खिलौना है। वे ही जब, जहाँ जिस जीवनमें रखेंगे, रहना होगा। आपको सीता, सावित्री, दमयन्ती आदिके जीवनसे शिक्षा और प्रेरणा लेनी चाहिये। नारी स्नेह, वात्सल्य, उदारता, सेवा और त्यागकी प्रतिमूर्ति होती है, आपको भी ऐसा ही बनना चाहिये। इसीमें आपकी शोभा है। नि:स्वार्थ त्याग, स्नेह और सेवामें जो सुख और शान्ति है, उसकी सुमधुर अनुभूति तभी आप कर सकेंगी। भगवान्का स्मरण करके सर्वत्र उन्हींको देखना और वे जिस परिस्थितिमें डाल दें, उसीमें सन्तुष्ट रहना—यही शान्तिका पथ है।
(२) दर्शन और ज्यौतिष आपके प्रिय विषय हैं; इन्हें आपसे कौन छीनेगा? भगवान्से प्रार्थना करें। उनकी कृपासे आप ऐसे घरमें जा सकती हैं, जहाँ आपकी इस सुरुचिको आदर और प्रोत्साहन प्राप्त हो सके। आजीवन ब्रह्मचर्य आजकल किसी भी नर-नारीके लिये सहज सम्भव नहीं है; परंतु गृहस्थमें रहकर भी अधिक-से-अधिक संयम और यथासाध्य ब्रह्मचर्यका पालन किया जा सकता है। आपको यह नहीं भूलना चाहिये कि आप सब कुछ होनेके साथ ही नारी भी हैं। आपके हृदयमें माताका हृदय है। अत: आपको एक आदर्श नारी, भारतीय नारी बननेके बाद ही और कुछ बनना चाहिये। विद्या ‘स्वान्त:सुख’ के लिये है। भारतीय नारीकी प्रधान साधना सतीत्व और सेवा ही है। यही उसका स्वधर्म है और इसीसे वह योगिजनदुर्लभ परम पद एवं परा शान्तिको प्राप्त कर सकती है। नारी नरकी जननी है, नरका महान् आश्रय है। उसका स्थान बहुत ऊँचा है। उसका उत्तरदायित्व बहुत बड़ा है।
(३) अधिक चिन्तनसे भ्रूमध्यमें सिहरनकी प्रतीति होती है। चिन्ता और चिन्तन दोनों कम करके प्रसन्न रहनेकी चेष्टा करें।
(४) नारीके लिये सद्ग्रन्थोंका स्वाध्याय ही सत्संग है। जिन विचारोंमें तल्लीन होकर आप अपनेको पागलकी-सी स्थितिमें अनुभव करती हैं, वे हैं ही। वैसे ही भविष्यमें प्रतिकूलताकी आशंका या भावना करके बराबर चिन्ताशील बनना जीवनके विकास और उल्लासको अवरुद्ध और मूर्च्छित करना है। मनुष्यको अपने भीतर आशा और उत्साह भरना चाहिये, व्यर्थकी चिन्ता नहीं। आप भगवान् पर और भगवत्कृपापर भरोसा रखें। वे सबके सहज सुहृद् हैं। आपके भी आत्मा हैं। उन मंगलमय प्रभुकी दयासे आपका भविष्य मंगलमय होगा तथा वे आपके जीवनको सर्वोच्च लक्ष्यपर भी पहुँचायेंगे—ऐसी दृढ़ आस्था और निश्चित आशा रखते हुए आपको सतत प्रसन्न रहना चाहिये। शेष प्रभुकी कृपा।