गीता गंगा
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विश्वास-धर्म—भगवान् का प्रत्येक विधान मंगलमय

भगवान् सब प्राणियोंके सहज सुहृद् हैं, सर्वज्ञानस्वरूप हैं और सर्वशक्तिमान् हैं; अतएव उनके दयापूर्ण नियन्त्रणमें, जीवोंके लिये फलरूपमें जो कुछ विधान किया जाता है, सब उनके कल्याणके लिये होता है; क्योंकि भगवान् सुहृद् हैं। वे अहित कर नहीं सकते, सब उचित होता है; क्योंकि ज्ञानस्वरूप भगवान् जानते हैं कि कौन-से कार्यसे इसका वास्तविक कल्याण होगा। और सब पूरा होता है; क्योंकि सर्वशक्तिमान् भगवान् सब कुछ करनेमें समर्थ हैं, अतएव विश्वासी भक्त प्रत्येक परिस्थितिमें, प्रत्येक परिणाममें मंगलमय भगवान् का कल्याण-विधान समझकर प्रसन्न रहता है, उनकी अपार अहैतुकी कृपाका, उनके अनन्त सौहार्दका अनुभव करता और परम प्रसन्न रहता है, उसे प्रत्यक्ष मंगल दिखायी देता है। वह अनुकूल फलमें ही नहीं, प्रतिकूल-से-प्रतिकूलमें भी भगवान् की कृपा देखकर निर्विकार रहता और एकान्त आनन्दका अनुभव करता है। प्रत्येक अपमान, तिरस्कार, निन्दा, धननाश, प्रिय-से-प्रिय वस्तुके विनाश तथा अभाव, रोग, मृत्यु—सभीमें समानरूपसे प्रसन्न रहता है। किसी भी स्थितिमें उसका विश्वास जरा भी नहीं हिलता।

भक्त नरसीजीके एकमात्र पुत्र था। बड़ा प्रिय था। भगवान् के मंगल-विधानसे उसकी मृत्यु हो गयी। नरसीजीको दिखायी दिया—मेरे मनमें पुत्रमोह था। मैं इस मोहमें भगवान् को कभी-कभी भूल जाता था। यह एक बाधा थी भजनमें। भगवान् ने कृपा करके इस बाधाको दूर करके मेरा बड़ा मंगल किया। उन्होंने भगवन्नाम-कीर्तन करते हुए गाया—

भलुँ थयुँ रें भाँगी जंजाल।
सुखे थी भजशुं श्रीगोपाल॥

बहुत अच्छा हुआ, जंजाल टूट गया! अब सुखसे निर्बाध श्रीगोपालका भजन करूँगा।

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