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॥ श्रीहरि:॥

अविनाशी सुख

अपने लिये सुख चाहनेसे नाशवान‍् सुख मिलता है और दूसरोंको सुख पहुँचानेसे अविनाशी सुख मिलता है॥१॥

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सुख भोगनेके लिये स्वर्ग है तथा दु:ख भोगनेके लिये नरक है और सुख-दु:ख दोनोंसे ऊँचे उठकर महान् आनन्द प्राप्त करनेके लिये यह मनुष्यलोक है॥२॥

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संसारके सम्बन्ध-विच्छेदसे जो सुख मिलता है, वह संसारके सम्बन्धसे कभी मिल सकता ही नहीं॥३॥

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जबतक नाशवान‍्का सुख लेते रहेंगे, तबतक अविनाशी सुखकी प्राप्ति नहीं होगी॥४॥

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भोगोंका नाशवान‍् सुख तो नीरसतामें बदल जाता है और उसका अन्त हो जाता है, पर परमात्माका अविनाशी सुख सदा सरस रहता है और बढ़ता ही रहता है॥५॥

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