बड़प्पन
उत्पन्न और नष्ट होनेवाली वस्तुको लेकर अपनेको बड़ा अथवा छोटा मानना बहुत बड़ी भूल है, तुच्छता है॥३१६॥
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अपनेको छोटा और दूसरेको बड़ा मानना असली बड़प्पन है। अपनेको बड़ा और दूसरेको छोटा मानना असली नीचपना है॥३१७॥
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बड़ा वास्तवमें वही है, जो दूसरोंको बड़ा बनाता है। जो दूसरोंको छोटा बनाता है, वह खुद छोटा है, गुलाम है॥३१८॥
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धन, जमीन, मकान आदि जड़ चीजोंके सम्बन्धसे अपनेको बड़ा मानना बुद्धि भ्रष्ट होनेका लक्षण है॥३१९॥
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सांसारिक पदार्थोंको लेकर जो अपनेको बड़ा मानता है, उसको ये सांसारिक पदार्थ तुच्छ बना देते हैं॥३२०॥
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पहले हम बड़े थे, फिर हमने धन पैदा किया। अब उस धनके कारण अपनेको बड़ा मानने लग गये तो वास्तवमें धन बड़ा हो गया, हम छोटे हो गये! धनकी इज्जत हो गयी, हमारी फजीती हो गयी!॥३२१॥