भगवान्से विमुखता
भगवान्से विमुख होनेपर ही मनुष्यको करने, जानने और पानेकी कमीका अनुभव होता है॥४७०॥
••••
परमात्मतत्त्वसे विमुख हुए बिना कोई सांसारिक भोग भोगा ही नहीं जा सकता और रागपूर्वक सांसारिक भोग भोगनेसे मनुष्य परमात्मासे विमुख हो ही जाता है॥४७१॥
••••
भगवान्से विमुख होते ही जीव अनाथ हो जाता है॥४७२॥
••••
जो जगत्को नहीं जानते, वही जगत्में फँसते हैं और जो परमात्माको नहीं जानते, वही परमात्मासे विमुख होते हैं॥४७३॥
••••
संसारसे कुछ लेनेकी इच्छा करते ही हम भगवान्से विमुख हो जाते हैं॥४७४॥