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पारमार्थिक मार्ग

प्रत्येक मनुष्यको भगवान‍्की तरफ चलना ही पड़ेगा, चाहे आज चले या अनेक जन्मोंके बाद तो फिर देरी क्यों?॥२६६॥

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सच्चे हृदयसे भगवान‍्में लग जानेपर साधकको भूत, भविष्य और वर्तमानके सभी सन्तोंकी प्रसन्नता, कृपा प्राप्त होती है॥२६७॥

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जब साधक स्वयं भगवान‍्में लग जाता है, तब उसके मन-बुद्धि भगवान‍्में स्वत: लग जाते हैं, उनको लगाना नहीं पड़ता॥२६८॥

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पारमार्थिक मार्गमें साधकको सांसारिक अनुकूलता (धन, मान, बड़ाई, आराम आदि) तभीतक बाधक प्रतीत होती है, जबतक उसमें सांसारिक सुखकी कुछ इच्छा या रुचि विद्यमान है॥२६९॥

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सांसारिक सिद्धि-असिद्धिमें राजी-नाराज होनेवाला मनुष्य पारमार्थिक मार्गमें तत्परतासे नहीं चल सकता॥२७०॥

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पारमार्थिक मार्गमें राग-द्वेष ही साधककी साधन-सम्पत्तिको लूटनेवाले मुख्य शत्रु हैं॥२७१॥

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किसी तरहसे भगवान‍्में लग जाओ, फिर भगवान‍् अपने-आप सँभालेंगे॥२७२॥

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परमात्माकी तरफ चलनेसे संसारका कार्य (व्यवहार) भी ठीक चलता है, पर संसारकी तरफ चलनेसे परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती॥२७३॥

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अपनेको परमात्मामें चाहे भेदभावसे लगाओ, चाहे अभेदभावसे लगाओ, परिणाम एक ही होगा॥२७४॥

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संसारके काममें तो नफा और नुकसान दोनों होते हैं, पर भगवान‍्के काममें नफा-ही-नफा होता है, नुकसान होता ही नहीं॥२७५॥

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संसारकी तरफ चलनेवालेका कोई भी साथी नहीं होता, पर भगवान‍्की तरफ चलनेवालेके सब साथी हो जाते हैं॥२७६॥

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स्वार्थी आदमी पारमार्थिक मार्गमें भी अपना स्वार्थ ही सिद्ध करता है और पारमार्थिक साधक सांसारिक व्यवहारमें भी अपना परमार्थ ही सिद्ध करता है॥२७७॥

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सांसारिक इच्छा उत्पन्न होते ही पारमार्थिक मार्गमें धुआँ हो जाता है। यदि इस अवस्थामें सावधानी नहीं हुई तो इच्छा और अधिक बढ़ जाती है। इच्छा बढ़नेपर तो पारमार्थिक मार्गमें अँधेरा ही हो जाता है!॥२७८॥

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जिस दिन सांसारिक रुचि मिटेगी, उसी दिन पारमार्थिक रुचि पूरी हो जायगी॥२७९॥

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सांसारिक विषयमें असन्तोष करनेसे पतन होता है और पारमार्थिक विषयमें असन्तोष करनेसे उत्थान होता है॥२८०॥

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संसारमें तो ‘करने’ से उन्नति होती है, पर पारमार्थिक मार्गमें ‘न करने’ से उन्नति होती है॥२८१॥

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संसारमें लगनेसे पतन भी बाकी रहता है, उत्थान भी बाकी रहता है। परन्तु भगवान‍्में लगनेसे पतन तो होता नहीं, उत्थान बाकी रहता नहीं॥२८२॥

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