सद्गुण और दुर्गुण
जितने भी दुर्गुण-दुराचार हैं, वे सब मनुष्यके बनाये हुए हैं, भगवान्के बनाये हुए नहीं। भगवान् ‘सत्’ हैं और दुर्गुण-दुराचार ‘असत्’ हैं। सत् से असत् की उत्पत्ति कैसे हो सकती है?॥६७१॥
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संसारसे विमुख होनेपर बिना प्रयत्न किये स्वत: सद्गुण आते हैं॥६७२॥
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जब जीव परमात्माके सम्मुख होता है, तब सब सद्गुण आ जाते हैं और जब संसारके सम्मुख होता है, तब सब अवगुण आ जाते हैं॥६७३॥
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अपनी निर्बलताका दु:ख हो और भगवान्की कृपापर विश्वास हो तो जिस दुर्गुणको हटाना चाहते हैं, वह हट जायगा और जिस सद्गुणको लाना चाहते हैं, वह आ जायगा॥६७४॥
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सद्गुण-सदाचारको अपनेमें माननेसे अभिमान आता है और दुर्गुण-दुराचारको अपनेमें माननेसे वे स्थायी हो जाते हैं॥६७५॥