सत्संग और कुसंग
सत्संगसे जितना लाभ होता है, उतना एकान्तमें रहकर साधन करनेसे नहीं होता॥६७६॥
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सत्संगमें बिना कुछ किये उन्नति होती है और कुसंगमें बिना कुछ किये पतन होता है॥६७७॥
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असत् का संग छोड़े बिना सत्संगका प्रत्यक्ष लाभ नहीं होता॥६७८॥
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केवल सुननेसे सत्संग नहीं होता। सत्संग होता है—सत् के साथ सम्बन्ध जोड़नेसे, सत् को महत्त्व देनेसे॥६७९॥
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सबमें परिपूर्ण एक परमात्मतत्त्वको देखना सत्संग (सत् का संग) है॥६८०॥
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भगवान्में प्रेम होना भी सत्संग है और नाशवान्का प्रेम (मोह) छूटना भी सत्संग है॥६८१॥
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जैसे शरीरके लिये भोजन आवश्यक है, ऐसे ही पारमार्थिक जीवनके लिये सत्संग आवश्यक है॥६८२॥
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जैसे मनुष्यशरीर बार-बार नहीं मिलता, ऐसे ही मनुष्यशरीर मिलनेपर भी सत्संग बार-बार नहीं मिलता॥६८३॥
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सत्संग हमारे पुरुषार्थसे नहीं मिलता, प्रत्युत केवल भगवत्कृपासे मिलता है॥६८४॥
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जहाँ स्वार्थ होता है, वहाँ सत्संग नहीं होता, प्रत्युत कुसंग होता है॥६८५॥
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हर हालमें खुश रहनेकी विद्या सत्संगसे ही मिलती है॥६८६॥
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सच्ची बातको मान लें—यह सत्संग है॥६८७॥
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जैसे भीतर अग्नि कमजोर हो तो भोजन पचता नहीं, ऐसे ही भीतर लगन न हो तो सत्संगकी बातें पचती नहीं॥६८८॥
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भगवान्की विशेष कृपाकी पहचान है—सत्संग प्राप्त होना॥६८९॥
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व्यापारमें तो लाभ और नुकसान दोनों होते हैं, पर सत्संगमें लाभ-ही-लाभ होता है, नुकसान होता ही नहीं॥६९०॥
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सत्संगकी बातोंको महत्त्व देनेसे वृत्तियोंमें बहुत फर्क पड़ता है और विकार अपने-आप नष्ट होते हैं॥६९१॥
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भोगोेंमें जितनी आसक्ति होती है, उतनी ही बुद्धिमें जड़ता आती है, जिससे सत्संगकी तात्त्विक बातें पढ़-सुनकर भी समझमें नहीं आतीं॥६९२॥
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संसारसे कुछ लेनेकी इच्छा होते ही कुसंग शुरू हो जाता है॥६९३॥
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शरीर-संसारसे अपना सम्बन्ध मानना कुसंग है॥६९४॥
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कुसंगसे हानि नहीं होती, प्रत्युत कुसंगको स्वीकार करनेसे हानि होती है॥६९५॥
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ईश्वर, परलोक और धर्मको न माननेवाले नास्तिकका संग सबसे अधिक पतन करनेवाला है॥६९६॥
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अपने भीतर कमी (दोष) होती है, तभी बाहरी कुसंगका असर पड़ता है। कारण कि आकर्षण सजातीयतामें होता है, विजातीयतामें नहीं॥६९७॥
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सत्संग, सद्विचार, सच्छास्त्र और दु:ख—ये चारों विवेकीके लिये संसारसे सम्बन्ध-विच्छेद करानेवाले हैं॥६९८॥
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कई वर्षोंसे साधन करनेपर जो तत्त्व नहीं मिलता, वह सत्संगसे तत्काल मिल सकता है॥६९९॥
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साधन करना खुद धनको कमाना है और सत्संग करना धनी आदमीके गोद जाना है। जैसे गोद जानेवालेको कमाया हुआ धन मिलता है, ऐसे ही सत्संगमें जानेसे बिना साधन किये साधन होता है॥७००॥