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सन्त-महात्मा

सन्त-महापुुरुषोंके उपदेशके अनुसार अपना जीवन बनाना ही उनकी सच्ची सेवा है॥६१२॥

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जैसे सूर्यके द्वारा सबको समानरूपसे प्रकाश मिलता है, ऐसे ही सन्त-महात्माओंके द्वारा सबका समानरूपसे हित होता है॥६१३॥

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बाहरका प्रकाश तो सूर्य करता है और भीतरका प्रकाश संत-महात्मा करते हैं॥६१४॥

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सन्त-महापुरुषकी सबसे बड़ी सेवा है—उनके सिद्धान्तोंके अनुसार अपना जीवन बनाना। कारण कि उन्हें सिद्धान्त जितने प्रिय होते हैं, उतने अपने प्राण भी प्रिय नहीं होते॥६१५॥

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भगवान‍्, सन्त-महात्मा, धर्म और शास्त्र—ये कभी किसीसे विमुख नहीं होते। केवल जीव ही इनसे विमुख होता है॥६१६॥

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समुद्रमेंसे कोई राई नहीं निकाल सकता। परन्तु सन्तोंने संसारभरके ग्रन्थोंमेंसे ‘गीता’ निकालकर हमें दे दी, यह उनकी कितनी विलक्षण कृपा है!॥६१७॥

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भगवान‍्से लाभ उठानेकी पाँच बातें हैं—नामजप, ध्यान, सेवा, आज्ञापालन और संग। परन्तु संतोंसे लाभ उठानेमें तीन ही बातें उपयुक्त हैं—सेवा, आज्ञापालन और संग॥६१८॥

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धनीलोग तो दूसरेको नौकर बनाते हैं, पर सन्तलोग दूसरेको भी सन्त ही बनाते हैं॥६१९॥

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भगवान‍्, सन्त, सच्छास्त्र और सद्विचार—ये चारों साधकको कभी निराश नहीं करते, प्रत्युत उसकी उन्नति करते हैं॥ ६२०॥

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समाजका सबसे अधिक सुधार वीतराग सन्तके द्वारा ही होता है॥६२१॥

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सन्त-महात्मा संसारमें लोगोंको अपनी तरफ लगानेके लिये नहीं आते, प्रत्युत भगवान‍्की तरफ लगानेके लिये आते हैं। जो लोगोंको अपनी तरफ (अपने ध्यान, पूजन आदिमें) लगाता है, वह भगवद्‍द्रोही और नरकोंमें ले जानेवाला होता है॥ ६२२॥

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