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उन्नति

जो वस्तु, परिस्थिति आदि अभी नहीं है, उसको प्राप्त करनेमें अपनी उन्नति, सफलता या चतुराई मानना महान् भूल है। जो वस्तु अभी नहीं है, वह मिलनेके बाद भी सदा नहीं रहेगी—यह नियम है। जो सदासे है और सदा रहेगी, ऐसी वस्तु (परमात्मतत्त्व)-को प्राप्त करनेमें ही वास्तविक उन्नति, सफलता या चतुराई है॥४०॥

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पारमार्थिक उन्नति करनेवालेकी लौकिक उन्नति स्वत: होती है॥४१॥

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विचार करो—हम अपनी जानकारीका खुद ही निरादर करेंगे तो फिर हमारी उन्नति कैसे होगी?॥४२॥

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वास्तविक उन्नति है—स्वभाव शुद्ध होना॥४३॥

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सांसारिक उन्नति वर्तमानकी वस्तु नहीं है और पारमार्थिक उन्नति भविष्यकी वस्तु नहीं है॥४४॥

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जो आराम चाहता है, वह अपनी वास्तविक उन्नति नहीं कर सकता॥४५॥

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जिस प्रकार आकाशमें वृक्ष कितना ही ऊँचा उठे, उसकी कोई सीमा नहीं है, इसी प्रकार मनुष्यकी उन्नतिकी भी कोई सीमा नहीं है॥४६॥

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पारमार्थिक उन्नतिमें संयोगजन्य सुखकी लोलुपता ही खास बाधक है॥४७॥

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मनुष्यका उत्थान और पतन भावसे होता है, वस्तु, परिस्थिति आदिसे नहीं॥४८॥

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बुद्धिके अनुसार मन और मनके अनुसार इन्द्रियाँ होनेसे उत्थान होता है। परन्तु इन्द्रियोंके अनुसार मन और मनके अनुसार बुद्धि बनानेसे पतन होता है॥४९॥

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