ॐ
अमूल्य वचन
‘सात्त्विक आचरण और भगवान् की विशुद्ध भक्तिसे अन्त:करणकी शुद्धि होनेपर जब भ्रम मिट जाता है, तभी साधक कृतकृत्य हो जाता है।’
‘भगवान् गुणातीत हैं, बुरे-भले सभी गुणोंसे युक्त हैं और केवल सद्गुण-सम्पन्न हैं।’
‘भगवान् चाहे जैसे, चाहे जब, चाहे जहाँ, चाहे जिस रूपमें प्रकट हो सकते हैं।’
‘चराचर ब्रह्माण्ड ईश्वर है, उसकी सेवा ईश्वरकी सेवा है। संसारको सुख पहुँचाना परमात्माको सुख पहुँचाना है।’
‘निष्कामभावसे प्रेमपूर्वक विधिसहित जप करनेवाला साधक बहुत शीघ्र अच्छा लाभ उठा सकता है।’
‘भारी-से-भारी संकट पड़नेपर भी विशुद्ध प्रेमभक्ति और भगवत्-साक्षात्कारके सिवा अन्य किसी भी सांसारिक वस्तुकी कामना, याचना या इच्छा कभी नहीं करनी चाहिये।’
‘भगवान् में सच्चा प्रेम होने तथा भगवान् की मनोमोहिनी मूर्तिके प्रत्यक्ष दर्शन मिलनेमें विश्वास ही मूल कारण है।’
‘निराकार-साकार सब एक ही तत्त्व है।’
‘वह सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वगुणसम्पन्न, सर्वसमर्थ, सर्वसाक्षी, सत्, चित्, आनन्दघन परमात्मा ही अपनी लीलासे भक्तोंके उद्धारके लिये भिन्न-भिन्न स्वरूप धारण करके अनेक लीलाएँ करता है।’
‘उस परमात्माके शरण होना साधकका कर्तव्य है, शरण होनेके बाद तो प्रभु स्वयं सारा भार सँभाल लेते हैं।’