॥ श्रीहरि:॥
निवेदन
इस पुस्तकमें गहरे दार्शनिक तत्त्वोंपर विचार करनेके साथ-ही-साथ उन विविध साधनोंका वर्णन है जिनका आश्रय लेनेपर मनुष्य पवित्रहृदय होकर अपने जीवनके परम ध्येयको अनायास ही प्राप्त कर सकता है। भगवान् के रहस्य, तत्त्व, स्वरूप और गुणोंके सम्बन्धमें भी बड़ा सुन्दर विवेचन है। पातंजलयोगके खास-खास विषयोंका निरूपण है। नवधा भक्तिका विशद वर्णन है। श्रीमद्भगवद्गीताके कई प्रसंगोंका महत्त्वपूर्ण स्पष्टीकरण है। संत-महात्माओंके स्वरूप, लक्षण और महत्त्वकी व्याख्या है। वर्णाश्रमधर्मका महत्त्व बतलाया गया है और छोटे-छोटे सुकुमार-मति बालकोंके जीवनको उच्च बनानेवाली शिक्षा भी दी गयी है। सारांश यह कि यह भाग सभीके लिये समान उपयोगी, लाभप्रद और आदरणीय है। मैं भारतीय नर-नारियोंसे प्रार्थना करता हूँ कि वे इसे पढ़ें और इसमें बताये हुए साधनोंको और आदर्शोंको श्रद्धापूर्वक अपने जीवनमें उतारनेकी चेष्टा करें। मेरा विश्वास है कि ऐसा करनेपर कुछ ही समयमें उनके अपने जीवनमें विलक्षण परिवर्तन और अपूर्व लाभ दिखायी देगा।
विनीत
हनुमानप्रसाद पोद्दार
ज्येष्ठ, सोमवती अमावस्या, १९९८