अन्धे-बहरे बन जाओ
अन्धे बन जाओ—परमात्माको छोड़कर और किसीको देखनेमें—दूसरा कुछ देखो ही मत। ऐसा न हो सके—जगत् दीखे तो कम-से-कम दूसरोंके दोषोंको, परायी स्त्रीको, लुभी दृष्टिसे भोगोंको, पराये पापोंको और जगत्की नित्यताको तो देखो ही मत।
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बहरे बन जाओ—भगवान् और भगवान्के सम्बन्धी मधुर चर्चा, कीर्तन, गान आदिको छोड़कर और कुछ भी सुननेमें। जो कुछ सुनो—भगवन्नाम और भगवान्के तत्त्व और लीला-चरित्र ही सुनो। ऐसा न हो सके—और भी कुछ सुनना पड़े तो कम-से-कम ईश्वरनिन्दा, साधुनिन्दा, परनिन्दा, स्त्री-चर्चा, पराये अहितकी चर्चा, अपनी प्रशंसा, व्यर्थ बकवाद और चित्तको परमात्माके चिन्तनसे हटानेवाले शब्द तो सुनो ही मत।
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गूँगे बन जाओ—भगवान् और भगवान्के सम्बन्धकी बातोंको छोड़कर अन्य कुछ भी बोलनेमें। जो कुछ बोलो, भगवान्के नाम और गुणोंकी चर्चा करो। ऐसा न हो सके—बिना बोले न रहा जाय तो कम-से-कम असत्य, कपटपूर्ण, दूसरोंका अहित करनेवाले, परनिन्दाके, अपनी प्रशंसाके, व्यर्थ बकवादके और भगवान्में प्रीति न उपजानेवाले वचन तो बोलो ही मत।
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लूले-लँगड़े बन जाओ—भगवान्के और भगवान्से सम्बन्ध रखनेवाले स्थानोंको छोड़कर और कहीं भी जानेमें—जहाँ भी जाओ भगवान्के प्रेमके लिये, उनकी सेवाके लिये उनके मन्दिरोंमें ही जाओ, चाहे उन मन्दिरोंमें मूर्ति हों या वे साधारण घर हों। ऐसा न हो सके—दूसरी जगह जाना ही पड़े तो कम-से-कम वेश्यालयमें, शराबखानेमें, जुआरियोंमें, कसाइयोंमें, परपीडकोंमें जहाँ भगवान् की, सन्तोंकी, धर्मकी, सदाचारकी निन्दा या इनके विरोधमें क्रिया होती हो ऐसे स्थानोंमें, जहाँ परनिन्दा और अपनी प्रशंसा हो ऐसी जगहोंमें तो जाओ ही मत।