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आत्माकी अनन्त शक्ति

याद रखो, आत्मामें अनन्त शक्ति है, मोहकी गहरी चादरसे वह ढक रही है। इसीसे तुम अपनेको मन और इन्द्रियोंके वशमें पाते हो, इसीसे तुम्हारे अन्दर वासना, कामना और विषयासक्तिने अपने डेरे डाल रखे हैं, इससे तुम पाप-तापके आक्रमणसे पीड़ित हो। यदि तुम किसी तरह उस चादरको फाड़ सको तो फिर तुम्हारी अनन्त शक्तिके सामने किसीकी भी शक्ति नहीं जो ठहर सके और तुम्हें किसी प्रकार भी सता सके।

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मोहकी चादर फाड़नेका प्रधान साधन है आत्मशक्तिमें विश्वास, आत्मबलका निश्चय। विश्वासकी ज्योतिसे मोह-तमका नाश तत्काल ही हो सकता है। तुम विश्वास करो, निश्चय करो कि तुम्हारे अन्दर अनन्त शक्ति है। मन, इन्द्रियाँ सब तुम्हारे सेवक हैं, तुम्हारी अनुमतिके बिना उनमें जरा भी हिलने-डुलनेका सामर्थ्य नहीं है। तुम्हारी ही दी हुई जीवनी-शक्तिसे वे जीवित हैं और तुम्हारे ही बलपर वे सारी चेष्टाएँ करते हैं। तुमने भूलसे अपनेको उनका गुलाम मान लिया, तुम अपने स्वरूपको भूल गये, इसीसे तुम्हारी यह दुर्दशा है। आत्माके स्वरूपको सँभालो, फिर तुम अपनेको अपार शक्तिसम्पन्न पाओगे।

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मोहकी चादरके अन्दर छिपी हुई आत्मशक्ति तो काम करती ही रहती है, परन्तु मोहावृत होनेसे उसके वे काम भी मोह बढ़ानेवाले ही होते हैं, इससे शक्तिका दुरुपयोग और व्यर्थ व्यय होता है। तुम निश्चयकी—विश्वासकी कटार हाथमें लेकर चादरको चीर डालो। देखो, तुम्हारे अन्दर तुम्हें परम शान्ति प्रदान करनेवाली ज्ञानाग्नि निरन्तर जल रही है। वह राखसे ढकी है। अश्रद्धा और आत्मविस्मृति ही वह राखका भारी ढेर है। इस भस्मराशिको हटाकर दहका दो आगको, उस प्रचण्ड आगमें मोहकी चादरका एक-एक धागा जल जायगा। फिर तुम आत्माकी अनन्त शक्तिकी झाँकी कर सकोगे।

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याद रखो—निश्चय, श्रद्धा, विश्वास और आत्मस्वरूपकी स्मृति ही तुम्हारी आत्माकी अनन्त शक्तिको प्रकट करनेवाले चार महाद्वार हैं। इनकी शरण ग्रहण करो—इनका आश्रय लो।

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