बुराईसे बचो
बुरे संगसे सदा बचो। भागवतमें कहा है—बुरे संगसे—सत्य, पवित्रता, दया, मौन, बुद्धि, श्री, लज्जा, यश, क्षमा, शम, दम और ऐश्वर्य आदि सब नष्ट हो जाते हैं। बुरे संगसे मन विषयोंका ही निवास बन जाता है, उसमें भगवत्-चिन्तनके लिये गुंजाइश ही नहीं रह जाती।
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बुरा संग मनुष्योंका, स्थानका, वातावरणका, पुस्तकोंका, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध—इन इन्द्रिय-विषयोंका और पुराने संस्कारोंका हो सकता है। इसलिये जहाँतक बने, अच्छे मनुष्योंका संग करो, अच्छे स्थानमें रहो, अच्छे वातावरणका सेवन करो, अच्छी पुस्तकें पढ़ो, इन्द्रियोंके द्वारा तमाम अच्छे विषयोंको ही ग्रहण करो, पुराने गन्दे संस्कारोंके उठते ही चित्तको दूसरे अच्छे विषयोंमें लगाकर उन्हें हटा दो।
बुराईको किसी प्रकार किसी अंशमें भी कहीं भी स्थान मत दो। कभी मनमें यह अभिमान मत करो कि मैं साधनामें बहुत आगे बढ़ा हूँ, जरा-सी बुराई मेरी क्या कर सकेगी। बुराईपर—पापपर कभी दया मत करो। अंकुर दीखते ही काट डालो—जड़से उखाड़ डालो। बुराई आती है पहले बीजरूपमें, फिर बड़ा वृक्ष बनकर चारों ओर फैल जाती है, सब तरफ छा जाती है बेलकी तरह। बुराईपर कभी विश्वास न करो।
दूसरोंकी बुराइयाँ मत देखो। बुराइयाँ देखनेसे बुराईका चिन्तन होता रहता है, और जैसा चिन्तन होता है, चित्त भी वैसा ही बनता चला जाता है। बुराइयोंका चिन्तन करते-करते यदि तुम्हारा चित्त बुराइयोंके साथ तदाकार हो गया तो फिर तुम्हें सब जगह बुराई ही दीख पड़ेगी। बुराईसे पिण्ड छूटना मुश्किल हो जायगा।
बुराई देखनी हो, अपनी देखो। निरन्तर आत्मनिरीक्षण करते रहो। पल-पलका हिसाब रखो—तन-मनसे कितनी और कैसी बुराइयाँ हुईं। फिर उनसे बचनेकी प्रतिज्ञा करो।
भगवान्से प्रार्थना करो—वे बुराईसे बचावें। मनमें निश्चय करो कि श्रीभगवान्के बलसे अब मेरे अन्दर कोई बुराई नहीं पैदा हो सकेगी। मुझसे कोई बुराई नहीं हो सकेगी। भगवान्के कृपा-बलपर तुम्हारा पक्का विश्वास होगा और मनमें बुराइयोंसे बचनेका दृढ़ निश्चय होगा तो अवश्य-अवश्य तुम सब बुराइयोंसे मुक्त हो जाओगे। घबराओ नहीं। बुराइयोंकी ताकत भगवान्की कृपाकी शक्तिके सामने अत्यन्त ही तुच्छ है।