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केवल परमात्मा ही हैं

सब जगह परमात्मा हैं, सबमें परमात्मा हैं, सब कुछ परमात्मा हैं, केवल परमात्मा ही हैं। असली बात यही है। तो भी पहले परमात्माको शुभमें देखो, कल्याणमें देखो, पवित्रतामें देखो, परोपकारमें देखो, सेवामें देखो, शुद्ध आचरणमें देखो, शुद्ध विचारोंमें देखो, सद‍्गुणोंमें देखो—यों देखते-देखते ज्यों-ज्यों बुद्धि बाह्यसे हटकर अन्तरकी ओर झुकने लगेगी, त्यों-ही-त्यों परमात्माकी झाँकी स्पष्ट होती जायगी और अन्तमें सब मिटकर केवल परमात्मा ही रह जायँगे।

परन्तु सबमें या सब कुछ परमात्मा ही हैं, इस विचारसे—या इस विचारकी भ्रान्तिसे पवित्र और शुभको छोड़कर केवल अमंगलमें, पापमें, पर-पीडनमें, अपवित्रतामें, हिंसामें, असत्यमें, व्यभिचारमें, अशुद्ध विचारोंमें और दुर्गुणोंमें परमात्माको देखनेका बहाना करोगे तो परमात्मा तो ध्यानमें नहीं रहेंगे—परमात्माके नामपर पापोंमें आसक्ति बढ़ती जायगी, जिसका परिणाम बहुत बुरा होगा!

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बुरा और अच्छा सब कुछ भगवान‍्से होता है, भगवान् ही बुरे और अच्छे बनते हैं, संसारमें जो कुछ होता है, सब भगवान्-ही-भगवान् हैं—यह सत्य-तत्त्व सद्विचारों और सत्कर्मोंके द्वारा अन्त:-करणकी शुद्धि होनेपर ही उपलब्ध होता है। नहीं तो, भगवान‍्के नामपर अपनी दुर्बलताओंका ही समर्थन होता है। सिद्धान्तका दुरुपयोग होता है और अपने-आपको धोखा दिया जाता है।

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सदा-सर्वदा सत्यकी ओर झुकते रहो, सत्यका पालन करो, सत्यका विचार करो, सत्यका मनन करो, सत्यका व्यवहार करो, सत्यका आचरण करो, सत्य-अनुभव करो, सत्य कर्म करो, सत्य बोलो, सत्य सुनो, जीवनको सत्यमय बनानेकी चेष्टा करो। यों करते-करते जब सत्यका सत्यस्वरूप तुम्हारे सामने प्रकाशित होगा, जब जीवन शुद्ध सत्यमय हो जायगा, तब केवल सत्य ही रह जायगा। तब आज जिसे असत्य मानकर छोड़नेको कहा जाता है, उसमें भी तुम्हें सत्य ही दीखेगा—उस सत्यका आजका यह असत्यस्वरूप उस समय सत्यमें बदल जायगा। नहीं, यह असत्य ही सत्य नहीं दीखेगा; यह असत्य रहेगा ही नहीं। यह मर जायगा। सदाके लिये मर जायगा! उस समय केवल सत्यका सत्यस्वरूप ही रह जायगा। आसक्ति, कामना, द्वेष, क्रोध, लोभ, मोह, भय, ईर्ष्या, विषाद आदि असत्यके विभिन्न स्वरूप उस समय नष्ट ही हो जायँगे। उनकी छाया भी नहीं रहेगी। उस समय यदि इनकी कहीं लीला होगी, तो वह सत्यका ही एक स्वेच्छासे रचा हुआ स्वाँग होगा, जो असत्यकी बाढ़को रोककर सत्यकी रक्षा, सत्यके विस्तार, सत्यके सम्पादन, सत्यके प्रकाश और सत्यको सत्यरूपमें दर्शन करानेके लिये ही होगा। वह सत्यकी ही सत्यप्रेरित सत्यसे ओत-प्रोत सत्य लीला होगी। उसमें और आजके इस असत्याच्छादित अज्ञानरूप, मोहरूप, पापरूप, विषादरूप, भयरूप सत्यमें जो मूलत: सत्य होनेपर भी असत्यका ही मूर्तरूप है—उतना ही अन्तर है जितना सत्य और असत्यमें होता है। इसीको सत्य मानकर यदि भ्रममें रहोगे तो यथार्थ दर्शन दुर्लभ ही रहेंगे।

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यह सत्य ही परमात्मा है, भगवान् है, सब समय है, सबमें है और सब कुछ है। इस सत्यकी उपलब्धिके लिये ही अनन्त जीवनका अनन्त कर्मप्रवाह है। इस सत्यको पाना ही मुक्ति है, जीवनकी सफलता है और भगवत्-साक्षात्कार है। यह सत्य है कि यह सत्य नित्य और सर्वत्र है। यह भी सत्य है कि सत्यके सिवा और कहीं कुछ भी सत्य नहीं हैं; परन्तु जबतक हमें सत्यके समग्र स्वरूपका अनुभव नहीं होता, तबतक सत्यका सत्यमय सत्यस्वरूप हमारे सामने अप्रकाशित ही रहता है। सब कुछको सत्य बताने या सत्यके सिवा कुछ भी नहीं है, ऐसा कहने जाकर हम सत्यके एक मलिनांशको जिसको हमने ही अपनी स्वाश्रित भूलसे मलिन कर डाला है, समग्र सत्य समझकर सत्यस्वरूप सम्पूर्ण सत्यके प्रकाशित होनेके मार्गमें बाधक हो जाते हैं। हम आप ही अपनेको धोखा देते हैं। हमारे इस मोहभंगके लिये—भूलको मिटानेके लिये हमें प्रयत्न करना आवश्यक है। यह कहा जा सकता है कि जो है ही नहीं उसको मिटानेका प्रयत्न करना भी भूल ही है, परन्तु इस भूलसे ही वह भूल कटेगी; जो सत्यके सिवा कुछ अन्य न होनेपर भी हमें सत्यके समग्ररूपकी उपलब्धि करनेमें बाधक हो रही है। अतएव सत्यको प्रकाशित करनेवाला होनेके कारण यह ‘प्रयत्न’ भूल नहीं है। यह भी सत्य ही है। किसी वस्तुका सत्यस्वरूप समझमें आनेपर उसके सम्बन्धकी भ्रान्ति अपने-आप ही मिट जाती है, इसलिये सत्यस्वरूपको समझनेमें सहायक होनेके कारण यह ‘प्रयत्न’ सत्य ही है। वह प्रयत्न है—बुरेको छोड़कर, असत् को त्यागकर, सत् को ग्रहण करना, सदाचार और सद्विचारपरायण होकर सत्कर्म करना, अभिमान और दम्भ छोड़कर भगवान‍्की भक्ति करना और साधन चतुष्टय—विवेक, वैराग्य, षट्सम्पत्ति और मुमुक्षुत्वको प्राप्त करके तत्त्वको जाननेकी चेष्टा करना।

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जबतक तुम्हें यह ज्ञान है कि यह ‘बुरा’ है और वह ‘भला’ तबतक तुम बुरे-भलेको एक नहीं बता सकते। अतएव यदि अपना कल्याण चाहते हो, सचमुच ही शान्त और सुखी होना चाहते हो, सबमें सर्वत्र, सब समय परमात्माको देखना चाहते हो, नित्य अभिन्नरूपसे एकमात्र परमात्माका ही अनुभव करना चाहते हो तो अच्छा-बुरा सब कुछ परमात्मा ही है, यह कहना छोड़ दो और शुद्ध कर्म, श्रद्धायुक्त भक्ति और विवेक-विरागयुक्त होकर तत्त्वज्ञानके सम्पादनके लिये प्राणपणसे साधना करो। भगवान् तुम्हारा कल्याण करेंगे।

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