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सब कुछ एक भगवान् ही हैं

द्वैत-अद्वैत, व्यवहार-परमार्थ, दृश्य-द्रष्टा, भाव-अभाव, प्रकृति-पुरुष जो कुछ भी कहो, सब एक भगवान् ही हैं। जहाँ जगत‍्का अत्यन्त-अभाव है, वहाँ भगवान् ही अभावरूप है और जहाँ जगत् है वहाँ भगवान् ही उसके अभिन्न-निमित्तोपादान कारणरूप हैं। वास्तवमें भगवान् ही आनन्दसत्तास्वरूप निस्पन्द शुद्ध चेतन हैं और भगवान् ही अनन्त विश्वसत्तारूप चिद्विलास हैं। इतना होनेपर भी साधकको अभ्यासका आरम्भ दोनोंको अलग-अलग मानकर ही करना चाहिये। दृश्य-प्रपंच जड है, अनात्म है, केवल व्यवहारमें ही उसकी सत्ता है, और उसका द्रष्टा आत्मा चेतन है। दृश्य विनाशी है, चेतन नित्य है। इस प्रकार द्रष्टारूपमें स्थित होकर दृश्य-प्रपंचको अनात्मरूपसे देखो।

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इसके बाद यह देखो कि यह दृश्य-प्रपंच स्वप्नद्रष्टाके संकल्पसे उत्पन्न स्वप्न-जगत‍्की भाँति मुझ चेतन आत्माके संकल्पसे मुझमें ही स्थित है। यह सब मेरा ही विलास है। मुझसे भिन्न कुछ भी नहीं है। इसलिये अब दृश्यका अभाव करनेकी आवश्यकता नहीं, दृश्यमात्रमें आत्मबुद्धि करो।

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परन्तु याद रखो—जहाँतक अनात्मबुद्धि या आत्मबुद्धिके द्वारा वस्तुका स्वरूप देखकर एकात्मज्ञान किया जाता है, वहाँतक तुम्हारा वह ज्ञान वृत्तिजन्य ही है। अनात्मबुद्धिसे समस्त दृश्य-प्रपंचका निषेध करते-करते जब वृत्ति अभावाकार हो जाती है या आत्मबुद्धिसे समस्त दृश्य-प्रपंचको आत्मरूप देखते-देखते जब वृत्ति भावाकार हो जाती है, तब उसी वृत्तिको ‘सूक्ष्म बुद्धि’ कहते हैं। इसीसे आत्माका साक्षात्कार होता है, परन्तु यह साक्षात्कार भी वस्तुत: वृत्तिजन्य ही है। यह एक प्रकारकी विशुद्ध ब्रह्माकारवृत्ति ही है।

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भगवान् ऐसी वस्तु नहीं जो बुद्धिकी सीमाके अन्दर आ सकें, चाहे वह बुद्धि कितनी ही विशुद्ध क्यों न हो। जहाँ एकमात्र भगवत्-सत्ता ही रह जाती है और ज्ञान-अज्ञान, प्राप्ति-अप्राप्ति, प्रपंचभाव-प्रपंच, निवृत्ति-प्रवृत्ति, साध्य-साधन और परमार्थ-व्यवहार आदिकी कोई कल्पना किसी रूपमें नहीं रहती। ऐसी वृत्तिहीन स्वरूपस्थितिको ही वास्तविक साक्षात्कार कहा जाता है। परन्तु यह व्याख्या भी केवल समझनेके लिये संकेतमात्र ही है। बुद्धिवृत्तिसे सर्वथा अतीत आदि-मध्यान्तरहित, नित्य एकरस भगवत्तत्त्वकी स्वरूपव्याख्या तो किसी भी अवस्थामें हो ही नहीं सकती। कहनेको अवश्य ही यह कहा जा सकता है कि इस स्थितिमें प्रशान्तात्मा साधक कृतकृत्य हो जाता है, फिर उसके लिये कुछ भी करना या पाना शेष नहीं रह जाता।

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