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सच्चे धनी बनो

दूसरोंको चाहे जितना शान्तिका उपदेश दो, सुख-दु:खोंमें सम रहकर आनन्दमग्न रहनेकी चाहे जितनी मीमांसा करो, जबतक तुम्हारा हृदय शान्त नहीं है, जबतक तुम्हारा हृदय आनन्दसे पूर्ण नहीं है, तबतक सब व्यर्थ है। धनी कहलानेसे तो बखेड़ा बढ़ता है। सच्चे धनी बनो, फिर चाहे कोई तुम्हें कंगाल ही क्यों न समझे।

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अपना काम बनानेमें जल्दी करो, जीवनके दिन बहुत ही जल्दी-जल्दी बीते जा रहे हैं। परोपदेशमें ही उम्र बिता दोगे तो न तुम्हारा कल्याण होगा और न कोरे जबानी जमाखर्चसे दूसरोंका ही दु:ख दूर होगा। पहले धनी बनो, फिर बाँटो। बिना धनी हुए क्या बाँटोगे?

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अपने हृदयको सदा पैनी नजरसे देखते रहो, याद रखो—जहाँ तुम्हारा मन है तुम वहीं हो। मन्दिरमें रहो या वनमें, मन यदि कारखानेमें या बाजारमें है तो तुम भी वहीं हो। जिसके मनमें भगवान् बसते हैं, वह भगवान‍्के मन्दिरमें है और जिसके मनमें विषय बसते हैं, वह संसारमें है।

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वृत्तियोंको विषयोंसे हटाकर भगवान‍्में लगाओ या जहाँ वृत्ति जाय वहीं भगवान‍्को देखो। पल-पलमें सँभालते रहो, वृत्ति कहाँ है। द्रष्टा बने देखो! फिर वृत्तियाँ स्वत: ही भगवन्मुखी हो जायँगी।

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शास्त्रार्थ न करो, विवादमें मत पड़ो, किसीको हरानेकी नीयत न रखो; अपने काममें लगे रहो। अपना भजन, ध्यान, स्मरण, पूजन न छूटे। शास्त्रार्थमें जीत जाओगे तो अभिमान भर बढ़ेगा। उतनी देर जो बहिर्मुख वृत्ति रहेगी, वह तो बड़ी हानि होगी ही।

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जान-पहचान ज्यादा बढ़ानेकी कोशिश न करो; चुपचाप भजन करते रहो। ख्यातिसे प्रपंच बढ़ेगा। परिवार बढ़ेगा, भजनमें बाधा आवेगी! मान-पूजा होने लगेगी और कहीं मान-पूजाको मन स्वीकार कर लेगा, तब तो समझो कि पतनके लिये गड्ढा ही खुद गया।

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कम बोलो, कम सुनो, कम देखो, कम मिलो-जुलो, यह सब उतना ही करो जितना अत्यन्त जरूरी है। एक पल भी बिना जरूरत इन कामोंमें मत लगाओ।

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घरमें अतिथिकी-ज्यों रहो; कुछ भी अपना मत समझो। सेवा करानेमें संकोच करो; डर-डरकर व्यवहार करो। सबका हित चाहो। किसीको दु:ख न पहुँच जाय, इस बातका खयाल रखो। ममता मत बढ़ाओ। अतिथिको घरसे चले ही जाना है, इस बातको याद रखो।

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अपने लिये पापको छोड़कर अन्य किसी भी विपत्तिसे न डरो; डरो दूसरोंको संकोचमें डालनेमें, डरो दूसरोंको बाध्य करनेमें, डरो दूसरोंको दु:ख पहुँचानेमें, डरो दूसरोंका अहित करनेमें, डरो दूसरोंसे पूजा करवानेमें, डरो दूसरोंसे सेवा करवानेमें, डरो दूसरोंको चरणधूलि देनेमें, डरो दूसरोंसे स्तुति सुननेमें और डरो भगवान‍्को भूलनेमें।

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ऐसा प्रयत्न करते रहो कि क्षणभर भी भगवान् न भूल जायँ। वे मनमें, वाणीमें तथा नेत्रोंमें बसे ही रहें। और किसी बातमें भले ही भूल हो जाय, पर इसमें भूल न हो।

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साधनमें सन्तोष न करो, सदा आगे बढ़ते ही रहो, देखते रहो आज कितना आगे बढ़े। रुको नहीं। पीछे फिरनेकी तो कभी कल्पना ही मनमें मत उठने दो।

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भगवान् पर विश्वास रखो, उनकी तुमपर बड़ी दया है, वे सदा तुम्हारे साथ हैं, उनका हाथ सदा तुम्हारे सिरपर है। तुम उनकी प्रत्यक्ष देख-रेखमें हो। वे सदा तुम्हारी खुद सँभाल करते हैं। तुम यह विश्वास कभी मनसे मत हटने दो। फिर उनके कोमल करका स्पर्श पाकर कृतार्थ हो जाओगे।

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