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सच्ची सफलता

याद रखो—मनुष्य-जीवनकी सच्ची सफलता भगवान‍्के प्रेमको प्राप्त करनेमें ही है। भगवत्-प्रेमकी प्राप्ति किसी भी साधनसे नहीं होती। यह तभी मिलता है जब भगवान् स्वयं कृपा करके देते हैं।

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भगवान‍्की कृपा सभीपर है, परन्तु उस कृपाके तबतक दर्शन नहीं होते जबतक मनुष्य उसपर विश्वास नहीं करता और भगवत्कृपाके सामने लौकिक-पारलौकिक सारे भोगों और साधनोंको तुच्छ नहीं समझ लेता। परन्तु ऐसे विश्वासकी प्राप्ति और सबको तुच्छ समझनेकी स्थिति भी भगवत्कृपासे ही प्राप्त हो सकती है।

इसलिये भगवत्कृपाकी—एकमात्र भगवत्कृपाकी ही बाट देखते हुए भगवान‍्का भजन करो। मनके दोष, मनकी चंचलता, विषयोंमें आसक्ति आदि न मिटें तो निराश मत होओ, भजनके बलसे सब दोष अपने-आप दूर हो जायँगे।

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जो मनुष्य भजन न करके दोषरहित होनेकी चेष्टा करता है, और दोषोंके रहते अपनेको भगवत्कृपाका अधिकारी मानता है, वह तार्किकोंकी दृष्टिमें बुद्धिमान् होनेपर भी वस्तुत: भगवान‍्की अनन्त शक्तिमयी सहज कृपाकी अवहेलना करनेका अपराध ही करता है। जहाँतक बन सके, बाहरके पापोंसे बिलकुल बचकर भगवान‍्का भजन करो। जीवन बहुत थोड़ा है, विचारोंमें ही बिता दोगे तो भजनसे वंचित रह जाओगे।

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भजन मन, वचन और तन—तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान‍्का चिन्तन मनका भजन है, नाम-गुण-गान वचनका भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीवसेवा तनका भजन है। भजन सर्वोत्तम वही है, जिसमें कोई शर्त न हो, जो केवल भजनके लिये ही हो। तन-मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने-आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।

और भजनमें आजकलके दुर्बल प्रकृतिके नर-नारियोंके लिये सबसे अधिक उपयोगी और लाभदायक है—भगवान‍्के नामका जप और कीर्तन! बस, जप और कीर्तनपर विश्वास करके नामकी शरण ले लो, नाम अपनी शक्तिसे अपने-आप ही तुम्हें अपना लेगा और नाम-नामीमें अभेद है, इसलिये नामके द्वारा अपनाये जाकर नामी भगवान‍्के द्वारा तुम सहज ही अपनाये जाओगे। याद रखो, जिसको भगवान‍्ने अपना लिया, उसीका जन्म और जीवन सफल है, धन्य है!

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