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सदा अपने मनको देखते रहो

सदा अपने मनको देखते रहो। अभिमान, काम, क्रोध और मोह आदि लुटेरे मनरूपी महलमें ऐसे दुबककर छिपे रहते हैं कि साधारण दृष्टिसे देखनेपर यह पता ही नहीं चलता—ये अन्दर मौजूद हैं; परन्तु मौका पाकर ये प्रकट हो जाते हैं और फिर सद‍्गुण और सद्विचाररूपी धनको ऐसी निर्दयतासे लूटते हैं कि उम्रभरका किया-कराया प्राय: सब नष्ट हो जाता है।

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अपनेको निर्भय मानकर कभी निश्चिन्त और असावधान न रहो। जबतक इन लुटेरोंका तुम्हारे मनमें बीजनाश न हो जाय तबतक बराबर इन्हें मारनेकी चेष्टा करते रहो। बड़ी-बड़ी युक्तियोंसे ये तुम्हारे मित्र और आज्ञाकारी सेवक-से बनकर अन्दर रहना चाहेंगे, परन्तु इनपर कभी विश्वास न करो। जरा-सा पता चलते ही पछाड़नेका जतन करो।

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जहाँतक बने अभिमानी, कामी-क्रोधी और लोभी मनुष्योंका इच्छापूर्वक संग न करो। उनके संगसे तुम्हारे हृदयमें कलुषित भाव पैदा होंगे और उनसे तुम्हें कोई सच्ची सहायता नहीं मिलेगी।

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किसीकी निन्दा मत करो। याद रखो, इससे तुम्हारी जबान गंदी होगी, तुम्हारी वासना मलिन होगी। जिसकी निन्दा करते हो, उससे वैर होनेकी सम्भावना रहेगी और चित्तमें कुसंस्कारोंके चित्र अंकित होंगे।

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बिना विशेष आवश्यकताके बड़े आदमियोंसे, सरकारी अफसरोंसे और मान-प्रतिष्ठा चाहनेवाले पुरुषोंसे न मिलो। क्योंकि ऐसे लोग तुम्हारी सच्ची बात सुनना नहीं चाहेंगे। उनकी हाँ-में-हाँ मिलाकर तुम्हें अपने शुद्ध विचारोंकी अवहेलना करनी पड़ेगी। कहीं उनकी रायके विरुद्ध सच बोलोगे तो वे नाराज होंगे।

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याद रखो—संसारमें दोषी लोग ही दूसरेके दोषोंको ढूँढ़ा करते हैं; क्योंकि उन्हें अपने दोषोंको ढँकनेके लिये दूसरेके दोषोंकी आड़ आवश्यक होती है। साधुलोग तो सब जगह साधुता ही खोजते हैं और दिखलायी भी देती है उन्हें साधुता ही। वे नीर-क्षीरविवेकी हंसकी तरह गुण ही ग्रहण करते हैं।

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बन-ठनकर बाहरसे लोगोंसे बहुत सुन्दर दिखायी देने लगे, इससे क्या हुआ। जबतक हृदय कलुषित है, जबतक अन्तर्यामी परमात्माके सामने तुम्हारा अन्त:करण सुन्दर होकर नहीं आता, तबतक बाहरी सुन्दरता वैसी ही है जैसे शराबसे भरा हुआ सोनेका कलश।

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प्रारब्धवश जगत‍्में तुम्हारी बड़ी कीर्ति हो गयी, लोग पूजने लगे—इससे क्या हुआ। जबतक तुम्हारा हृदय मलिन है, जबतक तुम लुक-छिपकर पाप करते हो, तबतक मानसिक अशान्ति, सन्ताप और नरकदु:खसे कदापि नहीं बच सकते।

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भक्ति और ज्ञानके नामपर बुरे कर्म करना भगवान‍्को ठगनेकी गंदी चेष्टा करना है। इन लोगोंसे वह कहीं अच्छे हैं जो बुरे कर्म करते हैं, परन्तु बुरे कहलाते हैं। भक्ति और ज्ञानके नामको जो कलंकित नहीं करते।

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‘परायी चुपड़ी’ देखकर जलो मत। अपनी एक रोटीमेंसे गरीबको एक टुकड़ा देकर खाओ। दु:खीको देना और सुखीके सुखमें प्रसन्न होना उनकी सेवा करना है। सबका हित चाहो, सबका हित करो और हित होते देखकर सुखी होओ।

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