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साधन-पथके विघ्न

जहाँतक बने कम बोलो, बिना बोले काम न चलता हो वहीं बोलो। किसीको सलाह देने मत दौड़ो, दो आदमी बात करते हों तो उसे सुननेकी चेष्टा न करो, न उनके बीचमें बोलो। वाणीका अपव्यय न करो। जो बोलो सो सत्य, सरल, हितकर, मधुर और परिमित बोलो। वाणीसे किसीको भुलानेकी, धोखा देनेकी, किसीका अहित करनेकी या जी दुखानेकी चेष्टा मत करो। किसीकी निन्दा या चुगली न करो। कम-से-कम बोलनेके बाद जितना समय बचे, सब-का-सब श्रीभगवान‍्के नामजपमें, भगवान‍्के गुणगानमें लगा दो।

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जहाँतक बने मनको श्रीभगवान‍्के चिन्तनमें लगाये रखनेकी चेष्टा करो। भगवान‍्ने कहा है मुझमें मन लगा लो, फिर मेरी कृपासे सारे विघ्न अपने-आप ही नाश हो जायँगे। मनमें न किसीकी बुराई चाहो, न किसीसे घृणा करो, न अभिमानको स्थान दो, न शोक या विषादको ही आने दो। किसी भी दूसरेकी चीजपर मनको न चलने दो। वैराग्यकी भावना करो। सदा भगवान‍्की कृपापर भरोसा रखते हुए भगवान‍्का स्मरण करो, सबका भला चाहो, दया, प्रेम और सहानुभूति बढ़ाओ। किसीके दोष मत देखो—सब जगह परमात्माको देखनेकी चेष्टा करो।

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शरीरसे सबकी यथायोग्य सेवा करो, किसी प्राणीकी हिंसा न करो, किसीकी चीज न चुराओ, जहाँतक बने स्त्रीसंगका त्याग करो। परस्त्रीका तो सर्वथा त्याग कर दो। इन्द्रियोंका संयम करो और सबमें भगवान् समझकर शरीरसे सबको सुख पहुँचानेकी चेष्टा करो।

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सब विषयोंमें अपनेको जानकार मत समझो, जिस विषयका तुम्हें ज्ञान नहीं है, उसके सम्बन्धमें कोई राय न दो। जाननेकी आवश्यकता हो तो संकोच और अभिमान छोड़कर उस विषयके जानकारसे पूछ लो। बिना साधनके किसी भी वस्तुका भीतरी ज्ञान नहीं होता, परमार्थतत्त्वकी बात ही अलग है। इसलिये केवल किताबोंके पन्ने उलटकर ही अपनेको ज्ञानी या भक्त मत मान बैठो, ज्ञान और भक्तिके लिये श्रद्धापूर्वक साधना करो।

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जहाँतक बने विषयभोगमें संयम करो, मनमें सन्तोष रखो, जीवनमें सादगी और पवित्रता लाओ, चित्तको शान्त रखना सीखो। आहार-विहारको नियमित करो।

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घृणा, द्वेष और वैर तथा दम्भ, परदोष-दर्शन और डाह साधनराज्यके बड़े शत्रु हैं। इनसे सदा बचे रहनेकी चेष्टा करो। उपदेशक, वक्ता, सुधारक, गुरु, पथप्रदर्शक बननेकी कामना मत करो। जीवनको सत्य, प्रेम, दया, ज्ञान और भक्तिमें साननेकी चेष्टा करो, श्रद्धा, स्वार्थ-त्याग और वैराग्यके भावको बढ़ाते रहो। ये जितने ही बढ़ेंगे, तुम्हारे जीवनमें सत्य और प्रेम आदि गुणोंका उतना ही अधिक विकास होगा।

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शौकीनी, व्यसन, आलस्य, प्रमाद, संशय, दुराग्रह, विवाद, कुतर्क, जानकारीका अभिमान, बहुत बातें करना, बहुत लोगोंसे मिलना-जुलना और मान-बड़ाईकी इच्छा—ये साधनपथमें बड़े भारी विघ्न हैं। इनसे सदा बड़ी सावधानीसे अपनेको बचाते रहना चाहिये।

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