गीता गंगा
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भगवान् के आनेकी विश्वासपूर्वक प्रतीक्षा करें

प्रवचन—दिनांक ६-७-१९४२, सायंकाल, साहबगंज, गोरखपुर

मनुष्य-शरीरका समय बहुत ही अमूल्य है। एक मिनट भी समय व्यर्थ नहीं खोना चाहिये। समयको उच्चकोटिके काममें बिताना चाहिये। करोड़ रुपया खर्च करनेसे भी एक क्षणका समय नहीं मिल सकता। समय परिमित है, अचानक मृत्यु प्राप्त हो जाती है। मनुष्य-शरीर ईश्वरकी विशेष कृपासे मिला है। तुलसीदासजी कहते हैं यह जीव काल, कर्म, स्वभाव, गुणके अनुसार घूमता रहता है—

फिरत सदा माया कर प्रेरा।
काल कर्म सुभाव गुन घेरा॥
कबहुँक करि करुना नर देही।
देत ईस बिनु हेतु सनेही॥

कभी करुणा करके प्रेमी भगवान् मनुष्य-शरीर देते हैं। ऐसे शरीरको प्राप्त करके उच्चकोटिके काममें समय बिताना चाहिये। मनुष्य-जीवनके एक क्षणमें जब भगवान् मिल सकते हैं तो ऐसे समयका क्या मूल्य हो सकता है। यह कहना भी बहुत बड़ी बात नहीं है—श्वासा खाली जात है तीन लोकका मोल। इसलिये जो समय बाकी है वह भगवान् के अर्पण कर देना चाहिये। भगवान् से यही प्रार्थना करनी चाहिये कि अब हमें अपना लो। देश, काल इस कारणसे अच्छा है कि परमात्माकी प्राप्ति इस युगमें शीघ्र होती है। थोड़े समयमें काम बन सकता है।

कलिजुग केवल नाम अधारा।
सुमिरि सुमिरि भव उतरहु पारा॥

इस युगमें नाम ही आधार है और हमलोगोंका जन्म भारतवर्षमें उत्तम कुल और उत्तम जातिमें हुआ है, इसलिये खूब जोरसे भगवान् के भजनमें लग जाना चाहिये और आशा-प्रतीक्षा रखनी चाहिये कि भगवान् शीघ्र मिलेंगे। जितना ही हमारा विश्वास और प्रसन्नता रहेगी उतनी ही जल्दी भगवान् हमें मिलेंगे। जैसे शबरी भगवान् के दर्शनके लिये प्रतीक्षा करती थी, ऐसे ही हमें भगवान् के भजनमें जोरसे लगे रहना चाहिये और भगवान् की प्रतीक्षा करनी चाहिये। भगवान् शीघ्र मिलेंगे, अवश्य मिलेंगे। इस प्रकार समझकर आनन्द और प्रेममें मग्न रहना चाहिये। चिन्ता-शोक पास भी नहीं आने दे। हर समय अपनेपर भगवान् की दयाको देख-देखकर आनन्दमें मुग्ध रहना चाहिये। इस प्रकार भगवान् की प्रतीक्षा करें कि आज रातमें भगवान् आयेंगे, आज नहीं मिलें तो पुन: कल प्रतीक्षा करें। भगवान् के लिये व्याकुल होकर पुकारें तो भगवान् प्रकट हो जायँ। जैसे रगड़से अग्नि प्रकट हो जाती है वैसे ही भगवान् प्रेमकी रगड़से प्रकट हो जाते हैं—

हरि ब्यापक सर्बत्र समाना।
प्रेम ते प्रगट होहिं मैं जाना॥

भगवान् हमारे मित्र, सखा, प्यारे, प्रेमी, स्वामी सब हैं।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥

हे देवोंके देव! आप ही माता, पिता, सखा आदि सर्वस्व हैं। इस प्रकार भगवान् को पुकारे। भगवान् की प्रतिज्ञा है कि जो जैसे भगवान् को भजता है, भगवान् को सर्वत्र समझता है, भगवान् भी वैसे ही समझते हैं। जो सखा माने उसके लिये सखा, जो पति माने, पुत्र माने, पिता माने उसके लिये भगवान् वैसे ही बन जाते हैं। हजार व्यक्ति भी भगवान् से प्रेम करें तो एक क्षणमें सबसे भगवान् मिल सकते हैं—

छन महिं सबहि मिले भगवाना।
उमा मरम यह काहुँ न जाना॥

भगवान् सबसे यथायोग्य मिल लेते हैं। इस मर्मको कोई नहीं जानता। सब देखते हैं कि भगवान् मेरेसे ही मिल रहे हैं। भगवान् अनन्तरूप धारण करके सबसे मिल लेते हैं। इस प्रकार समझकर आनन्दके समुद्रमें डूब जाना चाहिये। वहाँ आनन्द, शान्तिकी लहर उठ रही है। प्रभु इतना प्रेम करते हैं कि प्रेम करनेवालेकी जाति-पाँति कुछ नहीं देखते हैं। शबरी-जैसी नीच जातिकी स्त्री भी भगवान् के परमधाममें पहुँच गयी तो अपने लिये क्या चिन्ता है। वालीका भी भगवान् ने उद्धार किया, अपने परमधाममें भेज दिया तो हमारे लिये क्यों नहीं आयेंगे। अवश्य आयेंगे, जैसे नरसी मेहताने कहा था भगवान् अवश्य आयेंगे।

स्वर्गाश्रमकी बात है—कन्हैयालालजी सर्राफने खूब विश्वाससे भगवान् के आनेकी प्रतीक्षा की तो भगवान् आये। विश्वास हो, निश्चय हो तो भगवान् अवश्य आते हैं।

शबरी जातिकी भील थी। उसको मतंग ऋषिके कहनेसे विश्वास हो गया कि भगवान् दर्शन देंगे तो वह प्रतीक्षा करने लगी। इस प्रकार प्रतीक्षा करनेसे भगवान् मिल गये। हम भी शबरीकी तरह विश्वास कर लें कि भगवान् आयेंगे तो भगवान् आ सकते हैं। जैसे नरसी मेहताने निश्चय किया कि भगवान् आयेंगे तो भगवान् आये। खूब विश्वास हो, निश्चय हो, वाणीसे भी कहें कि भगवान् मिलेंगे तो भगवान् मिल जाते हैं।

ज्यों-ज्यों भगवान् का भजन होता है त्यों-त्यों भगवान् निकट आते रहते हैं। सूर्यभगवान् जितना ही निकट आते हैं, उतना प्रकाश होता है, भजन करनेसे प्रत्यक्ष शान्ति होती है। हमें भजन-ध्यानका खूब जोर लगाना चाहिये। भजनमें प्रत्यक्ष आनन्द है—

प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्॥
(गीता ९। २)

प्रत्यक्ष फलवाला, धर्मयुक्त, साधन करनेमें बड़ा सुगम और अविनाशी है।

इस प्रकार विश्वास करके खूब जोरसे भजन-साधनमें लग जाना चाहिये। हर समय भजन करना चाहिये। इससे प्रत्यक्षमें शान्ति मिलेगी। जैसा उत्तम समझें वैसा ही शुरू कर दें, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा। जिस कामके लिये आप आये हैं उस कामको पूरा करो। सबको नारायण समझकर सबकी सेवा करो। हृदयमें भगवान् को बैठाओ, नेत्रोंमें भगवान् को बैठाओ, वाणीसे भगवान् के नामका जप हो।

अभी हमलोग जीते हैं, इतने जीवनमें तो भगवान् कई बार मिल सकते हैं। एक बारकी तो बात ही क्या है। भगवान् कहते हैं—

अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्य: सम्यग्व्यवसितो हि स:॥
(गीता ९। ३०)

भगवान् घोषणा करते हैं, कहते हैं—मेरी भक्तिका प्रभाव सुन, यदि कोई अतिशय दुराचारी भी अनन्यभावसे मेरा भक्त हुआ मेरेको निरन्तर भजता है वह साधु ही माननेयोग्य है, क्योंकि वह यथार्थ निश्चय वाला है। अर्थात् उसने भली प्रकार निश्चय कर लिया है कि परमेश्वरके भजनके समान अन्य कुछ भी नहीं है।

इस प्रकार भगवान् घोषणा करते हैं और प्रतीक्षा करते हैं, इस प्रकार आश्वासन देते हैं, इसपर भी हम चिन्ता करें तो मूर्खता ही है।

हमें महात्मा बनना चाहिये। महात्माके कहे अनुसार चलना चाहिये।

नारायण नारायण नारायण।

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