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काम करते समय भगवान् को साथ समझें

प्रवचन—दिनांक ६-७-१९४२, रात्रि, साहबगंज, गोरखपुर

प्रश्न—हर एक काममें उत्साह कैसे रहे?

उत्तर—उत्साह तो तभी रह सकता है जब भगवान् का काम समझें। हर एक क्रिया करते समय भगवान् को साथ समझें। भगवान् ही सब काम अपनेसे करवा रहे हैं। काम ही साधन है। क्षण-क्षणमें रोमांच होता रहे। जोरके साथ साधन चल रहा है, अभिनय हो रहा है। हम उसके पात्र हैं। अपनी डॺूटी बजा रहे हैं। इस प्रकार समझें। दु:खी और दरिद्र भगवान् ही हैं। भगवान् ही उस रूपमें आ रहे हैं, भगवान् ही भिखारीके रूपमें आये हैं। इस प्रकार भगवान् की लीला देखता रहे। सबमें भगवान् का दर्शन करे। परमात्मा ही हमारे साथ शामिल होकर काम कर रहे हैं। उनकी हमारे ऊपर बड़ी दया है, उनका हमारे सिरपर हाथ है। वे ही काम करवा रहे हैं और साथमें रहकर कर रहे हैं। जैसे गोपियाँ और गोप भगवान् को साथ देखकर प्रसन्न हो रहे हैं। उस प्रकार भगवान् को साथ देखे। रोमांच होता रहे। भगवान् ही काम करवा रहे हैं। अपनी क्या सामर्थ्य है? जैसे आप लोग भूकम्पमें गये थे, सौ-सौ, पचास-पचास कुएँ साफ कराते थे, उसी प्रकार भगवान् की लीला समझकर काम करें। इस प्रकारका भाव हो तो थकावट नहीं आ सकती एवं बड़ा उत्साह होगा। जैसे लोभी आदमी थकता नहीं। उसका उद्देश्य तो रुपया है, अपना भगवान् है। मैंने जो बात कही कि काम करनेवालोंके रोमांच, अश्रुपात हो तब तो समझना चाहिये कि मैंने जो बात कही वे समझ गये, नहीं हो तो समझना चाहिये त्रुटि रही है। यह कसौटी है।

जो कुछ हम करते हैं ईश्वरके लिये करते हैं, ईश्वरकी आज्ञासे कर रहे हैं और ईश्वर ही करवा रहे हैं। जो अपने साथी हैं वे ईश्वरके परिकर हैं। स्वयं परमात्मा नट हैं। हम पात्र हैं, वे करवा रहे हैं। उनकी प्रसन्नताके लिये कर रहे हैं। उनकी आज्ञासे कर रहे हैं।

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