Hindu text bookगीता गंगा
होम > भगवत्प्राप्ति कैसे हो? > भक्त हनुमान्

भक्त हनुमान्

प्रवचन—दिनांक १२-७-१९४२, गोरखपुर

हनुमान् जी महाराज भगवान् के परम भक्त थे। उनमें तीन बात विशेष थी—

१-भगवान् के चरणोंमें रहते थे। भगवान् को छोड़कर एक क्षण भी अलग नहीं होना चाहते थे। जब भगवान् की आज्ञा होती थी, तभी भगवान् की आज्ञापालनके लिये चरणोंसे अलग होते थे।

२-जब भगवान् की आज्ञा हो गयी तो साथमें रहनेसे भी आज्ञापालनको विशेष महत्त्व देते थे।

३-नाममें रुचि थी। हृदयको चीरकर नामका प्रताप रोम-रोममें दिखाया, भगवान् की आज्ञापालनमें विघ्न पड़नेसे मरनेके लिये भी तैयार हो गये।

आज्ञापालनकी तत्परता देखकर वाल्मीकि रामायणमें भगवान् रामने कहा—हे हनुमान्! मैं तुम्हारा ऋणी हूँ। तुमको दु:ख होगा ही नहीं ताकि मैं दु:ख दूर करके उऋण हो सकूँ।

हनुमान् जी महान् बलवान् थे, महान् स्वामिभक्त थे, भगवान् को प्रेमसे अपने अधीन कर लिये।

सुमिरि पवनसुत पावन नामू।
अपने बस करि राखे रामू॥

हनुमान् जीने भगवान् के पवित्र नामका जप करके रामको अपने वशमें कर लिया। यह वशित्व सिद्धि है, जब भगवान् वशमें हो गये तो सब वशमें हो जाते हैं। भगवान् भागवतमें कहते हैं—

अहं भक्तपराधीनो ह्यस्वतन्त्र इव द्विज।
साधुभिर्ग्रस्तहृदयो भक्तैर्भक्तजनप्रिय:॥
(९। ४। ६३)

दुर्वासाजी! मैं सर्वथा भक्तोंके अधीन हूँ। मुझमें तनिक भी स्वतन्त्रता नहीं है। मेरे सीधे-सादे सरल भक्तोंने मेरे हृदयको अपने हाथमें कर रखा है। भक्तजन मुझसे प्रेम करते हैं और मैं उनसे प्रेम करता हूँ।

हनुमान् जी जातिसे पशु-योनिमें बन्दर रूपमें थे। नामने उनको पावन बना दिया। उनका नाम तो पवित्र है ही, भगवान् के जितने नाम हैं सब श्रेष्ठ हैं, परन्तु तुलसीदासजीके लिये रामनाम सबसे श्रेष्ठ है। वे पावन नाम रामनामको मानते थे, इसलिये उन्होंने कहा पावन नामू। निरन्तर नामजपके प्रतापसे भगवान् रामको अपने वशमें कर लिये।

लोकमें देखा जाता है कि जो स्वामीका आज्ञापालन ठीक प्रकारसे करता है, स्वामी उसीसे अधिक प्रसन्न रहते हैं। जिसके प्रति भगवान् की आज्ञा होती है, उसे कितना आनन्द होता है वही जानता है।

रामकी आज्ञाका हनुमान् कितनी प्रसन्नतासे पालन करते हैं। इसको हम देख सकें तो हम आनन्दमें मुग्ध हो जायँ, ऐसा दृश्य हमारे सामने आ जाय तो हमारा उद्धार हो जाय।

भगवान् रामने हनुमान् जी के द्वारा भरतजीके पास सन्देश भेजा। हनुमान् जी ने आकर कहा—तुम जिनका नाम ले रहे हो, जिनके विरहमें तड़प रहे हो, वह राम आ रहे हैं। यह सुनकर भरतजी ऐसे प्रसन्न हुए, जैसे प्यासा आदमी अमृत पा गया हो। भरतजी कहते हैं—

को तुम्ह तात कहाँ ते आए।
मोहि परम प्रिय बचन सुनाए॥

हनुमान् जी ने कहा मैं भगवान् का छोटा सा दास हूँ। पवनपुत्र हनुमान् मेरा नाम है। भरतजी यह सुनकर उन्हें हृदयसे लगा लिये और मुग्ध हो गये। बोले—

एहि संदेस सरिस जग माहीं।
करि बिचार देखेउँ कछु नाहीं॥

भगवान् के दर्शनसे जो आनन्द होता, उससे भी ज्यादा भगवान् के सन्देशसे हुआ। यदि सूचना नहीं मिलती तो मैं मर जाता, तब दर्शन होकर क्या होता। संसारमें कोई ऐसा पदार्थ नहीं है, जिसे देकर मैं उऋण हो सकूँ, इसलिये मैं ऋण चुकानेमें असमर्थ हूँ। अब प्रभुके चरित्र सुनाओ। हनुमान् देखकर मुग्ध हो गये। हर्षमें भरकर भगवान् के पास आकर कहा जल्दी चलें। भगवान् अयोध्या आदि स्थानोंको दिखाते हुए आ रहे थे। भगवान् कहते हैं यहाँके वासी मुझे वैकुण्ठवासियोंसे भी अधिक प्रिय हैं। भगवान् पहुँचकर भरतसे मिलते हैं।

अमित रूप प्रगटे तेहि काला।
जथा जोग मिले सबहि कृपाला॥

भगवान् सबसे मिले, जिसका जैसा भाव प्रेम था, जैसे छोटे-बड़े थे, सबसे यथायोग्य मिले। जिससे भगवान् मिले, वह यही समझता है कि भगवान् मेरेसे ही मिल रहे हैं। क्षणमें सबसे मिल लिये। भरतका कितना प्रेम था, कितनी व्याकुलता थी, एक मिनटका वियोग असह्य हो गया, वैसी व्याकुलता प्रेम हमारेमें हो जाय तो हमें भी भगवान् मिल सकते हैं।

अगला लेख  > गरीबका कल्याण कैसे हो?