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मौन रहना, भजन करना

एक साधु था, वह भजन ध्यान खूब करता। एक सेवक था वह खूब सेवा करता। बाबाजीने पूछा—हमसे सेवाके बदलेमें क्या चाहते हो? सेवकने कहा पुत्र चाहिये। उसने कहा पुत्र तो लिखा ही नहीं है। वह सेवक एक राजा था। समाधि लगाकर उसकी स्त्रीके गर्भमें जाकर बाबाजी पुत्र रूपसे प्रकट हुए। वे भजन-ध्यान करते थे, मौन रहते थे। बालक देखनेमें गूँगा मालूम होता था। बहुत उपाय किया कि बोले, परन्तु मौन ही रहे, राजा लाख रुपया खर्च करनेको तत्पर था, परन्तु बालक नहीं बोला। एक बार बगीचेमें गया, वहाँ तीतरको बोलनेसे पहचानकर राजाने उसका शिकार किया, तब वह मौनी बालक बोला कि जो बोला वह मरा, मैं भी बोलनेके कारण पुत्र बना। सब लोग प्रसन्न हुए कि आज लड़का बोला। फिर चेष्टा की गयी कि बोले, परन्तु नहीं बोला। तब बालक बोला है ऐसा कहनेवालेको फाँसीका आदेश हुआ। तब लड़का फिर बोला कि बोला तो मरा, उसे फाँसीसे छुट्टी मिल गयी। तब उस लड़केने अपने पितासे कहा कि मैंने तुमसे वरदान देनेके लिये पूछा कि क्या चाहता है। तुमने कहा—लड़का चाहता हूँ। इसलिये मैं पुत्र हुआ यह मरा, तीतर भी बोला तभी मारा गया, इस समय फाँसीपर चढ़नेका आदेश हुआ वह भी बोलनेसे। इसलिये इस संसारमें मौन रहना और भजन-ध्यान ही करना चाहिये, खूब भजन-ध्यान करना चाहिये। दिन-रात आनन्दमें मग्न रहे। सर्वत्र आनन्द-ही-आनन्द है। चिन्ता तो पासमें आ ही नहीं सकती।

हरिनामका सौदा कर लो, नामके साथ नामी बँधा ही है। नामके जपसे भगवान् आयेंगे। नियम कर लो कि जबतक भगवान् नहीं आयेंगे तबतक भजन करते ही रहेंगे। निश्चय कर लो कि आज रातको भगवान् मिलेंगे तो भगवान् को मिलना ही होगा। यह बात निर्विवाद सिद्ध है।

नारायण नारायण नारायण।

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