मुक्तिके लिये साधनकी आवश्यकता
प्रवचन—दिनांक ९-७-१९४२, प्रात:काल, गोरखपुर
भगवान् सर्वज्ञ हैं, सब कुछ जानते हैं, परन्तु किसकी मुक्ति होगी इसको भगवान् भी पहलेसे नहीं जानते हैं, यदि पहलेसे ही जान जायँ तो प्रयत्नकी क्या आवश्यकता है? भगवान् तो जानते हैं फिर प्रयत्न क्या हो? यह बात नहीं कि भगवान् जान नहीं सकते, जीवोंको अवसर दिया है, यदि भगवान् निश्चित कर दें कि भविष्यमें इसकी मुक्ति होगी तो प्रयत्नकी क्या आवश्यकता।
प्रेम और निष्कामभाव ज्यादा हो तो भगवान् जल्दी मिल जायँ। पूर्वके संचित पापसे भी भगवान् के मिलनेमें तारतम्यता हो जाय।
ये सब दृश्य पदार्थ नाशवान् हैं, इसलिये जिस कामके लिये आना हुआ है, उसे बना लेना चाहिये। जो मर जाता है, उसका फिर पता नहीं चलता कि कहाँ गया, इसलिये जो काम करना है जल्दी कर लेना चाहिये।
हम अनेक बार देव, पशु, मनुष्य आदि हो गये, कितनी बार इन्द्र, ब्रह्मा आदि होकर नष्ट हो गये। जलके परमाणु गिने जा सकते हैं, किन्तु इन्द्र, ब्रह्मा नहीं, इसलिये अनन्त जन्मोंके इस चक्रसे बचनेके लिये साधन करना चाहिये, अन्यथा यह स्थिति होगी—
सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ।
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोस लगाइ॥
इसलिये जिस कामके लिये आये हैं, उसको वीरताके साथ करना चाहिये। हम संसारमें खान, पान, भोग, आरामके लिये नहीं आये हैं। आहार, निद्रा आदि तो पशु भी करते हैं, यदि इसीमें अपना जीवन बिता दिया तो क्या लाभ हुआ। यदि यही सुख-दु:ख है तो हमसे कुत्ते अच्छे हैं, वेश्या अच्छी है। वेश्याका दर्शन तो पापरूप है, कुत्ता, वेश्या बननेके लिये तो लोग तैयार नहीं हैं, परन्तु यदि हम साधन-भजन नहीं करेंगे तो अनेकों बार कुत्ता बनना पड़ेगा। अत: हमें सावधानीके साथ भजन-साधनमें लगना चाहिये। जिस कामके लिये यहाँ आये हैं वह काम पहले करना चाहिये, वह है भगवत्प्राप्ति।
नारायण नारायण नारायण।