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सेवाकी महिमा

ऊँची जातिवाले नीची जातिकी सेवा कर सकते हैं, बल्कि नीची जातिकी सेवा करना और भी अधिक महत्त्वका है। गधे, कुत्तेकी सेवा भी करनी चाहिये। एकनाथजीने गधेको जल पिलाना रामेश्वरम् में जल चढ़ानेसे भी बढ़कर उत्तम समझा।

बीमार आदमीकी सेवा करनेसे बीमारी हो जायगी, इस भयसे सेवाका त्याग न करे। प्रारब्धमें होगा तभी बीमारी होगी। बीमारी हो जाय और प्राण भी चले जायँ तो उत्तम है। धर्मके लिये गुरु गोविन्द सिंहके पुत्रोंने प्राण दे दिये। मृत्युभय निश्चित होनेपर भी धर्मपर ही आरूढ़ रहे। बीमारीमें तो मरनेका निश्चय नहीं है।

एक बार हमारे गाँवमें प्लेगकी बीमारी हुई थी। बहुत-से लोग अपने घरसे कफनका कपड़ा या पिण्डके लिये आटा नहीं देते, इसे अशुभ मानते हैं। मुझे वहम नहीं आता है, कफन भी घरसे दे देते हैं, पिण्डके लिये भी आटा दे देते हैं। इसमें तो धर्मका काम है। सावधानीके साथ सेवा करे। जैसे कहीं आग लग जाय तो अपने नहीं लगे और बचानेकी चेष्टा करे। जानकर न मरे। अपनी रक्षा करते हुए मृत्यु हो जाय तो उसे भगवान् का पुरस्कार समझना चाहिये।

सेवा करनेमें मृत्यु हो जाय तो उसमें कल्याण समझे। मृत्यु आती हो तो उसे अपने लिये निमन्त्रण दे। जैसे चोरीका भय दिखलानेसे तथा खानेकी चीजोंका परिणाम दिखलानेसे सावधान हो जाते हैं, इसी प्रकार साधनके सम्बन्धमें सावधान हो जाना चाहिये। भगवान् ने गीतामें जगह-जगह भगवत्प्राप्ति शीघ्र होनेका उपाय बतलाया है। भगवान् और महात्मा झूठा आश्वासन नहीं देते हैं। ठग धोखा दे सकते हैं।

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