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अर्थकी शुद्धि

१—चोरी-ठगी न करे। व्यापारमें, नौकरी, दलाली, अफसरी, मजदूरी आदि सभीमें सचाई तथा ईमानदारीका सदा ध्यान रखे।

२—वस्तुओंमें मिलावट न करे। तौलमें कम न दे, अधिक न ले।

३—दूसरेका हक न ले, पराये धनको विषके समान समझे।

४—सत्य-न्यायसे शुद्ध कमाई करे।

५—कमाई अधिक हो तो उसे मौज-शौकमें, विवाह आदिके अवसरोंपर आडम्बरमें, सैर-सपाटेमें तथा व्यर्थकी सजावट-बनावटमें न खर्च करके गरीबोंकी सेवामें लगावे। उसे गरीबोंकी सम्पत्ति समझे।

६—पैसेका लोभ कभी न करे।

७—संग्रहकी अपेक्षा त्यागको अधिक महत्त्व दे।

८—अपने जिम्मेका काम जिम्मेवारी, सचाई, बुद्धिमानीके साथ पूरा समय देकर सम्पादन करे।

९—जिसमें हिंसा होती हो ऐसी किसी वस्तुका, चमड़ा, खानेकी चीज, मांस-मेद, हड्डी-मज्जा आदिका तथा शराब आदिका व्यापार कभी न करे।

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