भोजन
१—सदा सात्त्विक, सहजमें पचनेवाला करे, कम करे; भूखसे ज्यादा कभी न खाय। अच्छी तरह चबाकर खाय।
२—प्याज, लहसुन तथा उत्तेजक तामस वस्तु न खाय। मसाला कम-से-कम खाय। नशीली चीज न खाये-पीये।
३—किसीकी जूठन कभी न खाये-पीये।
४—भोजन स्वास्थ्य-रक्षा तथा पवित्र मनके निर्माणके लिये करे, स्वादके लिये नहीं।
५—मांस, मछली, शराब, अंडा आदिका सेवन कभी भी, किसी भी रूपमें न करे।
६—जहाँ मांस पकता हो, वहाँ पका हुआ भोजन न करे।
७—सात्त्विक, सदाचारी पुरुष, माता, पत्नी आदिके हाथका भोजन सर्वोत्तम है।
८—हर किसीके यहाँ तथा हर किसीके हाथका एवं प्रत्येक होटलमें भोजन न करे।
९—काँचके, चीनी-मिट्टीके बरतनमें न खाये-पीये। बिना मँजे-धोये बरतनोंमें न खाये-पीये।
१०—स्वास्थ्यनाशक चाट, बाजारू पदार्थ, आइसक्रीम आदिका सेवन न करे।
११—बीमारीकी स्थितिको छोड़कर स्नान किये बिना कुछ भी न खाये-पीये।
१२—बीच-बीचमें व्रतोपवास अवश्य करता रहे। व्रतके दिन फलाहार आदि करे, बढ़िया आहार न करे।
१३—भोजनके पहले हाथ-मुँह धोवे। भोजनके पश्चात् मुख-प्रक्षालन करे, कुल्ला करे, हाथ धोये। जूठा हाथ अवश्य धो ले।