Hindu text bookगीता गंगा
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दान

१—कुछ-न-कुछ प्रतिदिन दान करे।

२—जिसे, जहाँ, जब, जिस वस्तुकी आवश्यकता हो, उसे, वहाँ, उस समय, वह वस्तु, अपने पास हो तो दे दे।

३—दान सम्मानपूर्वक करे, अवज्ञापूर्वक नहीं।

४—भगवान‍्की वस्तु भगवान‍्की सेवामें लगी, यह समझे, न अभिमान करे, न दान लेनेवालेपर अहसान करे, न उसका लोक-परलोकममें फल चाहे, न बदला चाहे।

५—दान यदि गुप्तरूपसे हो तो सर्वोत्तम है।

६—तीर्थमें, पर्वके समय, पुण्य तिथियोंपर, माता-पितादिके श्राद्धके दिन भी दान करे।

७—धन, जमीन, अन्न, वस्त्र, जल, दवा, सत्परामर्श, आश्रय, अभय, मधुर वचन, मार्गदर्शन—जिसके पास जो हो, जितने परिमाणमें हो—वह उतने ही परिमाणमें आवश्यकतानुसार नम्रता तथा सम्मानके साथ दान करे।

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