Hindu text bookगीता गंगा
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परिचय

मेरे प्रति सद्भाव, स्नेह और प्रीति रखनेवाले बहुत-से पुरुष और देवियाँ बार-बार पूछा करते हैं कि ‘मेरा आध्यात्मिक सिद्धान्त तथा किस विषयमें क्या विचार है, मैं लोगोंको कैसे विचार तथा आचरणवाले देखना चाहता हूँ। यह स्पष्टरूपसे अलग-अलग बतला दूँ।’ यद्यपि मेरे सिद्धान्त या विचार जरा भी नवीन न होकर शास्त्रीय ही हैं, अतएव ‘मेरे’ सिद्धान्त-विचारके रूपमें कुछ भी कहनेकी आवश्यकता नहीं है; तथापि सबके स्नेहाग्रहको देखकर मैं यहाँ अपने माने हुए आदर्शप्रिय सिद्धान्त, विचार, आचार, कर्तव्य, बर्ताव, व्यवहार आदि बहुत-से विषयोंपर लिख रहा हूँ। इनमें कई बातें ऐसी होंगी, जिन्हें रुचि तथा विचार-भेदसे या परिस्थितिवश सब नहीं मान सकते। कुछके सम्बन्धमें विरोधी विचार भी हो सकते हैं, कुछको वर्तमान समयके अनुकूल भी नहीं समझा जा सकता और कुछ बातोंमें अपने विचारानुसार दोष तथा आचरण करनेपर हानि भी प्रतीत हो सकती है पर मैं इसलिये लिख भी नहीं रहा हूँ कि इनको अक्षरश: स्वीकार कर लिया जाय या इन्हें माननेके लिये कोई बाध्य हों। मैं अपने स्नेही सज्जनोंके अनुरोधपर अपने मनके आदर्श सिद्धान्त-विचार लिख रहा हूँ। मानने, आंशिक मानने, सर्वथा न माननेमें सभी स्वतन्त्र हैं। हाँ, मेरी समझसे इसमें लिखी सभी बातें शास्त्रानुमोदित और कल्याणकारिणी होंगी तथा उनके मानने एवं आचरणमें लानेपर भारतीय संस्कृति तथा धर्मके रक्षण एवं क्रियात्मक प्रचारके साथ ही उनको न्यूनाधिकरूपमें लौकिक, पारलौकिक और पारमार्थिक लाभ भी निश्चय ही होगा।

विनीत
हनुमानप्रसाद पोद्दार

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