पति-पत्नीके व्यवहार-धर्म
(पति)
१—पति-पत्नी परस्पर एक-दूसरेको पूरक तथा एक-दूसरेका अर्धांग समझे। छोटा-बड़ा नहीं।
२—पति अपनेको ईश्वर मानकर पत्नीको दासी या गुलाम कभी न समझे।
३—उसका उचित आदर-सम्मान करे। उससे सच्चे अर्थमें प्रेम करे। उसकी उचित माँगोंको अपने घरकी स्थितिके अनुसार यथाशक्ति सादर पूर्ण करे।
४—पत्नीके साथ कभी रूखा, कटु व्यवहार मन-तन-वाणीसे न करे।
५—पत्नीको कभी न मारे। यह महापाप है।
६—पत्नीको प्रेमभरे शब्दमें सत्-शिक्षा देता रहे। अपने उत्तम सदाचरण तथा सद्व्यवहारसे उसे संतुष्ट तथा सदाचारपरायण रखे।
७—गंदी पुस्तकें न स्वयं पढ़े। पत्नी पढ़ती हो तो उसे समझाकर रोक दे।
८—स्वयं फैशनसे दूर रहकर पत्नीको फैशनमें न जाने दे, मधुरतापूर्वक समझाकर।
९—परस्त्रियोंके पास न जाय। डांस न करे। पत्नीको भी समझाकर उसे पर-पुरुषोंके साथ डांस न करने दे।
१०—जहाँ अश्लील, असदाचार तथा भ्रष्ट खानपान होता हो—ऐसे स्थानोंमें न स्वयं जाय, न पत्नीको जाने दे, न दोनों साथ जायँ।
११—पत्नीके माता-पिता-भाई आदिकी निन्दा न करे।
१२—पत्नी बीमार हो तो उसकी अपने हाथों सब तरहकी सेवा भलीभाँति करे।
(पत्नी)
१—पत्नी पतिको ही परमेश्वर, परम गुरु तथा परम पूजनीय समझकर उसकी तन-मन-धनसे—सच्चे हृदयसे हर तरहकी सेवा करे।
२—किसी पर-पुरुषको गुरु न बनाये। किसी पर-पुरुषका स्पर्श न करे।
३—किसी पर-पुरुषसे एकान्तमें न मिले।
४—पतिके साथ सदा नम्रताका, विनयभरा, मधुर बर्ताव करे। कभी रूखे—कड़े शब्दोंका प्रयोग न करे। पतिका कभी अपमान न करे।
५—पतिकी उचित सेवाके लिये पहलेसे तैयारी रखे, जिससे उन्हें प्रतीक्षा न करनी पड़े। पतिकी सेवामें अपना सौभाग्य समझे।
६—पतिसे कभी छल-कपटका व्यवहार न करे।
७—घरकी स्थितिसे विरुद्ध पतिसे माँग न करे।
८—पतिके माता-पिता-भाई आदिकी बुराई न करे।
९—पर-पुरुषोंके साथ डांस न करे। मर्यादानाशक स्थानोंमें न जाय।
१०—सिनेमा आदिमें न जाय तथा पतिको भी समझाकर न जाने दे।
११—कृत्रिम उपायोंसे गर्भनिरोध न करे। गर्भपात न करावे।
१२—गंदा साहित्य न पढ़े। गंदे चित्र न देखे।