स्त्रीके लिये पालनीय
१—स्त्रीका महत्त्व तथा गौरव ‘सफल गृहिणी’ और ‘माता’ बननेमें है—क्लर्क, प्रोफेसर, वकील, मजिस्ट्रेट, मन्त्री आदि बननेमें नहीं। परिस्थितिवश नौकरी किये बिना काम न चले तो दूसरी बात है पर यथासाध्य अध्यापकीका ही कार्य करे।
२—पुरुषोंके क्षेत्रमें जाकर अपने गौरवसे गिरे नहीं। पर्दा नहीं पर स्त्रियोचित शोभनीय लज्जा अवश्य रखे।
३—फैशन स्वीकार न करे। अकेली सैर-सपाटेमें या सहेलियोंके साथ क्लबों, होटलोंमें न जाय।
४—विलायती ढंगके लंबे नख न रखे। नखों-होंठोंको रँगे नहीं।
५—पर-पुरुषसे हर हालतमें बचे, चाहे गुरुजन ही हों। किसीका स्पर्श न करे।
६—कम कीमतकी शुद्ध सादी पोशाक पहने, साड़ीका व्यवहार करे। साड़ीके नीचे लहँगा अवश्य रखे।
७—चमकीली-भड़कीली फैशनकी आकर्षक पोशाक न पहने। देशी ढंगके वस्त्र पहने, विदेशी ढंगके नहीं।
८—चुस्त कपड़े न पहने। सारे अंग ढके रहें, ऐसे कपड़े पहने। बड़ी लड़कियाँ जाँघिया तथा फ्राक न पहनें।
९—सिरपर नकली जूड़ा न रखे; न पुरुषोंकी भाँति केश कटवावे।
१०—गहने भी कम-से-कम पहने। गहने ऐसे बनाये जायँ, जो जल्दी-जल्दी टूटें नहीं, जिनमें बनवाईके पैसे कम लगें और समयपर तुरंत बिक सकें तथा घाटा न लगे।
११—घरकी चीजोंकी सँभाल, उनका यथायोग्य व्यवहार, बच्चोंका पालन-पोषण आदि सावधानीसे करे।
१२—मासिकधर्म (रजस्वला)के समय तीन दिन किसी पवित्र वस्तुका, खान-पानके पदार्थोंका, किसी व्यक्तिका स्पर्श न करे। चौथे दिन स्नान करनेके बाद स्पर्श करे।