शरीरके कार्य
१—किसी प्राणीकी हिंसा न करे। किसीको मारे-पीटे नहीं।
२—अनाचार-व्यभिचार न करे।
३—सबकी यथायोग्य सेवा करे।
४—अपना काम अपने हाथसे करे।
५—गुरुजनोंको प्रतिदिन प्रणाम करे।
६—पवित्र स्थानोंमें, तीर्थोंमें, सत्संगोंमें संतोंके दर्शन हेतु जाय।
७—मिट्टी, जल आदिसे पवित्र रखे। शुद्ध जलमें स्नान करे।
८—पाखानेमें, टबमें बैठकर, नंगा होकर स्नान न करे।
९—मल-त्यागके लिये बाहर जाय तो नदी या तालाब आदिके किनारे, रास्ते आदिमें मल-त्याग न करे। मलपर मिट्टी, बालू आदि डाल दे, जिससे दुर्गन्ध न फैले और उसकी खाद बन जाय।
१०—मल-मूत्रका त्याग करके हाथ धोये, कुल्ला करे।
११—खड़ा होकर पेशाब न करे।
१२—जहाँ-तहाँ थूके नहीं; अपवित्र, दूषित पदार्थोंका स्पर्श न करे।
१३—रोगकी जहाँतक हो आयुर्वेदिक चिकित्सा कराये।
१४—देशी दवाइयोंमें भी तथा आवश्यक होनेपर एलोपैथिक आदि दवा सेवन करनी पड़े तो उनमें भी, जिनमें कोई जान्तव पदार्थ हो, उनका प्रयोग बिलकुल ही न करे। प्राकृतिक चिकित्सापर, खान-पानके संयम आदिपर विशेष ध्यान रखे। रामनामकी दवा ले।