शिक्षा
१—शिक्षामें धर्म, सदाचार, मानवधर्म, नीति, संयम तथा सर्वहितभावकी शिक्षा अवश्य रहे।
२—लड़के-लड़कियोंको एक साथ न पढ़ाया जाय। सहशिक्षा न हो। ऐसे शिक्षालयोंमें बच्चोंको न भेजे।
३—जहाँ केवल विदेशी भावोंकी शिक्षा एवं आचार सिखाये जाते हों, उनमें बच्चोंको न भेजे।
४—बच्चे माता-पिताको नित्य प्रणाम करें, उन्हें माताजी, अम्माजी, पिताजी, बाबूजी आदि कहें; ‘मम्मी’, ‘डैडी’, ‘पापा’ आदि न कहें।
५—आजकलके दूर-दूरके छात्राश्रमोंमें बच्चोंको भेजना बहुत हानिकर है। वहाँ अधिकांशमें अनीति, उच्छृंखलता, असदाचार, नास्तिकता, खान-पान, विवाह आदिमें किसी विधि-निषेधको न मानने, गुरुजनोंका अनादर करने तथा यथेच्छाचारी बननेकी ही शिक्षा मिलती है।