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वाणीके कार्य

१—किसीकी निन्दा-चुगली न करे। यथासाध्य परचर्चा करे ही नहीं। किसीकी भी व्यर्थ आलोचना न करे।

२—झूठ न बोले।

३—कटु शब्द, अपशब्द न बोले। किसीका अपमान न करे। किसीको शाप न दे। अश्लील शब्दका उच्चारण न करे।

४—नम्रतायुक्त मधुर वचन बोले।

५—हितकारक वचन बोले। किसीका अहित न करे।

६—व्यर्थ न बोले। अभिमानके वाक्य न बोले।

७—भगवद‍्गुण-कथन, शास्त्रपठन, नामकीर्तन, नामजप करे। पवित्र पद-गान करे।

८—अपनी प्रशंसा कभी न करे।

९—जिसमें गौ-ब्राह्मणकी, गरीबकी या किसीके भी हितकी हानि होती हो, ऐसी बात न बोले।

१०—आवश्यकता होनेपर दूसरोंकी सच्ची प्रशंसा भले ही करे। किसीकी भी व्यर्थ खुशामद न करे।

११—गम्भीर विषयोंपर विचारके समय विनोद न करे। ऐसा हँसी-मजाक न करे, जो दूसरोंको बुरा लगे या जिससे किसीका अहित होता हो। व्यर्थ हँसी-मजाक तो करे ही नहीं। हँसी-मजाकमें भी अश्लील शब्दका प्रयोग न करे।

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