आत्मशक्तिमें विश्वासका फल
तुम्हारा एक पत्र पहले मिला था, दूसरा फिर मिला। उत्तर देनेमें मुझे सदा ही देर हो जाती है। स्वभावदोष है। तुम्हारे पत्रोंको मैंने ध्यानपूर्वक पढ़ा। तुम बहुत घबरा रहे हो; और निराश और हतोत्साह होकर मानो चारों ओर अन्धकार देख रहे हो। असफलता, विपत्ति और आधि-व्याधिमें ऐसा होना स्वाभाविक है। परन्तु ऐसी बात वास्तवमें है नहीं। मनुष्यको कभी हतोत्साह और निराश नहीं होना चाहिये। गिरे हुए उठते हैं, दुर्बल सबल होते हैं, तिरस्कृत सम्मानित होते हैं और चारों ओर अन्धकार देखनेवाले प्रकाश पाते हैं। यह प्रकृतिका नियम है। कृष्णपक्षके बाद शुक्लपक्ष आता ही है, रातके बाद दिन होता ही है। अतएव तुम इतना घबराओ मत। निराश होकर सर्वथा अपनेको अकर्मण्य मानकर महान् आत्मशक्तिका तिरस्कार न करो, नित्यसंगी, सर्वशक्तिमान् और तुम्हारे-हमारे अहैतुक प्रेमी परम सुहृद् भगवान्का अपमान न करो। भगवान्की घोषणा याद रखो—
मच्चित्त: सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि।
(गीता १८। ५८)
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
(गीता ९। २२)
‘मुझमें चित्त लगा लो, फिर मेरे प्रसादसे—अनुग्रहसे सब कठिनाइयोंसे तर जाओगे।’ ‘जो अनन्य पुरुष मेरी भलीभाँति उपासना करते हुए मेरा अनन्य चिन्तन करते हैं, उन नित्य मुझमें लगे हुए भक्तोंका ‘योगक्षेम’ मैं (स्वयं) वहन करता हूँ।’
अतएव तुम घबराओ नहीं। यह कभी मत सोचो कि हम तो गिरे हुए हैं, गिरे ही रहेंगे। उठेंगे ही नहीं। यह सोचना ही आत्माका और भगवान्का अपमान करना है। आत्मदृष्टिसे कहा जाय तो जो आत्मा भगवान् शंकराचार्य, बुद्धदेव, जनक, भीष्म, युधिष्ठिर, अर्जुन आदिमें था, वही तुम्हारेमें है। सुप्त आत्मशक्तिको जाग्रत् करना तुम्हारे हाथ है। भगवान्के बलपर निराशा, निरुत्साह, कायरता, दीनता छोड़कर साधनमें लगे रहो। आत्माकी अनन्त शक्तिपर विश्वास करो। जो मनुष्य आत्म-शक्तिपर विश्वास करके काममें जी-जानसे जुट जाता है—सफलताके बारेमें कभी सन्देह नहीं करता, उसके लिये अपने-आप ही सफलताका मार्ग सुन्दर प्रकाशमय और कुशकण्टकहीन बनता जाता है और ज्यों-ज्यों वह आगे बढ़ता है त्यों-ही-त्यों उसका अनुभव, उसका निश्चय, उसकी कार्यकरी शक्ति, उसका ज्ञान, उसकी क्षमता, उसका साहस और उल्लास बढ़ता चला जाता है। परन्तु जो आत्म-शक्तिमें या भगवान्के बलमें सर्वथा अविश्वास करके निराश होकर बैठ जाता है, कुछ भी करनेमें अपनेको नितान्त असमर्थ समझता है, उसको ब्रह्मा भी नहीं उठा सकते। वह विषादमय जीवन ही बिताता है। सब कुछ करनेमें समर्थ होकर भी वह सब प्रकारसे वंचित रह जाता है।
‘हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम।’ रामकी कृपासे और आत्माकी शक्तिसे क्या नहीं हो सकता? इनके लिये कोषमें ‘असम्भव’ शब्द ही नहीं है। तुम जो अपनेको अब किसी कामका नहीं मानते हो, सब ओरसे आश्रय और सहानुभूतिसे रहित मानते हो; बस, तुम्हारे विषादका यही कारण है। निर्धनतासे विषाद नहीं होता, वह तो आत्मग्लानिसे ही होता है। तुम्हारे शोकरहित होनेकी शक्ति तुम्हारे साथ भगवान्ने पहलेसे ही दे रखी है, वह नित्य तुम्हारे साथ रहती है। तुम्हारे अन्दर ही है। उसके रहते तुम अपनेको निराश्रय और सहानुभूतिसे रहित क्यों मानते हो? वही सच्चा और पक्का आश्रय है, जो बुरी-से-बुरी हालतमें भी साथ नहीं छोड़ता। भय, विभीषिका, वियोग, विषाद और विनाशमें भी जो साथ ही रहता है। तुम्हारे प्रत्येक दु:खमें जो दु:खका अनुभव करता रहता है, उस महामहिम नित्य आश्रयको बिसारकर ही तुम दु:खी हो रहे हो। तुम इसी अवस्थामें आज ही सुखी हो सकते हो, यदि उसे देख पाओ—उसका अनुभव कर सको। तुमने मेरे लिये लिखा कि ‘आप सर्वशक्तिमान् हैं, सब जगह आपका निवास है; यह हमारा पक्का विश्वास है। हम अब केवल आपके ही शरण हैं, आपको ही अपनेको अर्पण करते हैं। हमारा रास्ता आप ही कीजिये।’ सो भैया! यह तुम्हारा पागलपन है। आत्माकी दृष्टिसे मुझे सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापी मानते हो तब तो ठीक ऐसे ही तुम भी हो। अन्य किसी दृष्टिसे मानते हो तो तुम्हारा सर्वथा भ्रम है, इस भ्रमको तुरन्त छोड़ दो, इससे कोई लाभ न होगा। उन परमात्माके शरण जाओ जो वस्तुत: सर्वशक्तिमान्, सर्वव्यापी, सर्वलोकमहेश्वर होते हुए ही तुम्हारे-हमारे सबके परम सुहृद् हैं। अपना सब कुछ उन्हींके अर्पण कर दो। अपने सुख-दु:ख भी उन्हें सौंप दो। सब अर्पण करनेवालेके पास दु:ख, निराशा, उदासी, अन्धकार—ये सब कहाँ रह जायँगे? ये रहेंगे तो सब अर्पण कैसे हुआ? अतएव उन्हें इन सबको भी दे दो। कह दो— अच्छा-बुरा सब तुम्हारा। जब हमीं तुम्हारे हो गये तो इस हमारी बुराईको हम कहाँ रखें। वे दयालु प्रभु तुम्हारे अच्छे-बुरे सारे उपहारोंको अपनी कृपाकी नजरसे परम पवित्र और परम दिव्य बनाकर ग्रहण कर लेंगे। उनकी दयापर विश्वास करो। समस्त बल, समस्त ऐश्वर्य, समस्त श्री, समस्त धर्म, समस्त ज्ञान और समस्त वैराग्यके वे भण्डार हैं। और अपने सारे ऐश्वर्यसे, सारे माधुर्यसे, सारी शक्तिसे तुम्हें अपनानेको सदा तैयार हैं। उनकी शरण जाओ, वे तुमपर अपना दिव्य अमृत-कलश उँड़ेलकर तुम्हें निहाल कर देंगे। घबराओ नहीं, निराश न होओ, वे तुम्हारे हैं इस बातपर पूर्ण विश्वास करो और अपने भविष्यको उज्ज्वल—परम उज्ज्वल देखो। उनकी कृपासे तुम्हारा भविष्य इतना उज्ज्वल हो सकता है जितनेकी तुम कल्पना नहीं कर सकते।
यदि तुम्हें मुझपर कुछ भी विश्वास है तो तुम मेरी उपर्युक्त बातोंपर विश्वास करके अनन्त आत्मशक्तिपर और परम सुहृद् भगवान्की अपार कृपापर विश्वास करके शोक, विषाद, निराशा और निरुत्साहको छोड़कर उनके चरणोंका स्मरण करते हुए निश्चयपूर्वक उनके शरणकी ओर बढ़ चलो। अगर तुमने ऐसा किया तो मैं भी तुम्हें विश्वास दिलाता हूँ कि तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल ही नहीं, उज्ज्वलतम हो सकता है और उसकी प्रभाको पाकर बहुत दूर-दूरके लोग प्रकाश पा सकते हैं।
हमेशा भगवान्का चिन्तन करो। चित्तमें प्रसन्न रहो और आनन्दपूर्वक आगे बढ़ते चलो। शुद्ध नीयतसे कर्म करते रहो। भगवान् सब आप ही ठीक करेंगे!