भगवत्कृपापर विश्वास
......से कहिये। घबरायें नहीं। घबराना तो भगवान्की दयापर अविश्वास करना है। वे परम मंगलमय हैं। वे जो कुछ करते हैं, परम कल्याण ही करते हैं। हमलोग असलमें भगवान्की कृपा नहीं चाहते। भगवान्की व्यवस्थाको—जो सर्वथा, सर्वदा हमारा कल्याण करनेवाली ही है (चाहे कड़वी दवाके समान कभी-कभी खारी भले ही लगे)—स्वीकार नहीं करते। हम चाहते हैं—अपनी बुद्धिमें जँची हुई अनुकूलताको, जो समय-समयपर हमारा अमंगल करनेवाली होती है।
हम भगवान्की कृपाका जो अंश हमें अनुकूल दीखता है, उतनेहीको चाहते हैं, इसीसे उनकी पूर्ण कृपासे वंचित रह जाते हैं। ...... को क्या सभीको यही रोग है। इसीसे इतनी पीड़ा है। यह पीड़ा अपनी ही भूलसे पैदा की हुई है। श्रीभगवान् पर विश्वास रखकर उनका नामजप करना चाहिये और उनकी कृपापर भरोसा करके अपनेको सर्वतोभावसे उन्हींपर छोड़ देना चाहिये। ऐसा न हो सके तो भी नामजप ही करना चाहिये। जैसा भाव हो, उसीसे कल्याण होगा—आंशिक कृपाके दर्शन होंगे और सांसारिक वासनाएँ किसी अंशमें पूर्ण होंगी। परन्तु इसमें घाटा यही रह जायगा कि शीघ्र ही भगवत्प्रेमकी प्राप्ति नहीं होगी।
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....से कहना चाहिये बने जितना नामजप बढ़ायें। नाना प्रकारकी मानसिक चंचलतासे ध्यान नहीं हो पाता, इससे घबरायें नहीं। विश्वास करके जप नियमपूर्वक अधिक करनेकी चेष्टा करें। भविष्यको निराशामय देखना तो भगवान् पर अविश्वास करना है। इसलिये बहुत प्रसन्न रहियेगा, भगवान्की कृपापर विश्वास रखियेगा।