भक्तके सच्चे हृदयकी पुकार भगवान् अवश्य सुनते हैं
आपने एक पत्रमें लिखा था कि अच्छी स्थितिमें भी भगवान् पर भरोसा नहीं होता तब साधनकी शिथिलतामें तो हो ही कहाँसे, परन्तु अब ज्यादा निराशा नहीं होती। सो भगवान् पर भरोसा तो अच्छी, बुरी सभी स्थितियोंमें रखना चाहिये। इसके सिवा और सहारा ही क्या है? बलवान् और निर्बल सभीके बल एक भगवान् ही हैं, परन्तु अपनेको वास्तवमें निर्बल मानकर भगवान्के बलपर भरोसा रखनेवालेका बल तो भगवान् हैं ही। इस भगवान्के बलको पाकर वह अति निर्बल भी महान् बलवान् हो सकता है—‘मूकं करोति वाचालं पङ्गुं लङ्घयते गिरिम्’ प्रसिद्ध है।
भगवान्को पुकारने भरकी देर है। बीमार बच्चा बाहर बैठी हुई माँको पुकारे तो क्या माँ उसकी पुकार नहीं सुनती या कातर पुकार सुनकर भी आनेमें कभी देर करती है? अवश्य ही यह बात होनी चाहिये कि माँ बाहर मौजूद हो और बच्चेकी सच्ची कातर पुकार हो। माँ मौजूद नहीं होगी तो बिना सुने कैसे आयेगी और बच्चेकी पुकार केवल बनावटी और विनोदभरी होगी तो माँ सुनकर भी अपनी आवश्यकता न समझकर नहीं आयेगी। परन्तु कातर पुकार सुननेपर तो माँसे रहा ही नहीं जायगा। जब माँकी यह बात है, तब सारी माताओंका एकत्र केन्द्रीभूत स्नेह जिस भगवान्के स्नेहसागरकी एक बूँद भी नहीं है, वह भगवान् रूपी माँ दु:खी जीव-सन्तानकी कातर पुकार सुनकर कैसे रह सकेगी। जीव एक तो उसे अपने पास मौजूद मानता ही नहीं, दूसरे उसकी पुकार बनावटी और लोक-दिखाऊ होती है। यदि जीव यह माने कि भगवान् यहाँ मौजूद हैं (जो वे वास्तवमें हैं ही, क्योंकि वे सर्वव्यापी हैं) और वे बड़े दयालु हैं तथा यों मानकर उन्हें कातर स्वरसे पुकारे तो फिर उनके आनेमें देर नहीं होती। द्रौपदीकी पुकारपर चीर बढ़ाना और द्वारिकासे तुरन्त वनमें पहुँचकर पाण्डवोंको दुर्वासाके शापसे बचाना प्रसिद्ध ही है।
नियमोंका पालन प्रेम और अति दृढ़ताके साथ करते रहें। कृपा तो भगवान्की है ही। उस कृपाका अनुभव करते ही मनुष्य भगवदभिमुखी हो सकता है। सदा प्रसन्न रहिये और भगवान्की कृपाका दृढ़ भरोसा रखिये। भगवान्को नित्य अपने साथ मानिये, फिर पाप-ताप समीप भी नहीं आ सकते। × × निराश तो जरा भी न होइये। भगवान्के बलका भरोसा करनेपर निराशा कैसी?