दो बड़ी भूलें
श्रीभगवान्का भजन करना चाहिये। एक क्षणके लिये भी भगवान्की विस्मृति नहीं होनी चाहिये। जीवनके प्रत्येक क्षणकी प्रत्येक चेष्टाकी धारा भगवान्की तरफ ही बहनी चाहिये। भगवान्के सिवा और कोई भी लक्ष्य नहीं होना चाहिये। तथा लक्ष्यकी विस्मृति किसी समय नहीं होनी चाहिये। मनुष्य जिस कामसे बार-बार तकलीफ उठाता है, बार-बार उसीको करता है—यह उसकी बड़ी भूल है। विषयोंमें बार-बार दु:खका अनुभव होता है; फिर भी लोग विषयोंके पीछे ही भटकते हैं, सोचते हैं, मौका आनेपर भजन करेंगे। मौका आता है, बार-बार आता है। मनुष्य-जीवन भी तो एक मौका ही है, परन्तु इस मौकेको हम हाथसे खो देते हैं। न करनेयोग्य कष्टदायक कामको पुन:-पुन: करना और करनेयोग्य भजनका मौका खो देना—यही दो बहुत बड़ी भूलें हैं। सावधानीके साथ सबको इन दोनों भूलोंका त्याग करना चाहिये।